देवियाँ
सीता, धरा की पुत्री
भूमिजा है
भूमि सिखाती है, कर्म का वर्तन !
सहज ही आता है
उनके वंशजों को
भू, जल, और पर्वतों का
संरक्षण !
लक्ष्मी, सागर पुत्री
जलजा है
जल बहना सिखाये
उर में भक्ति जगाये !!
जल निधियों का स्रोत
मन को तरल बनाये !
सरस्वती आकाश पुत्री
नभजा
गगन है ज्ञान !
अस्पृश्य रह जाता है
हर विषमता से
विवेक जगाता है !
पर्वत पुत्री उमा
पार्वती है !
दुर्गा बन शौर्य जगाती
गौरी बन आनंद बरसाती !
यज्ञ की ज्वालाओं से
प्रकट हुई द्रौपदी
अग्नि करती है पावन
महाभारत की नायिका
सदा करे कृष्ण का अभिनंदन !
हमारा दर्शन इतना गहरा है की हर बात में जीवन से जुड़ी सूक्ति है ...
जवाब देंहटाएंसही कह रहे हैं आप, स्वागत व आभार!
हटाएंहमारे देश मार्गदर्शकों को दिखे ये | सुंदर |
जवाब देंहटाएंआमीन! स्वागत व आभार!
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंबहुत सुंदर, समृद्ध संस्कृति, स्त्री का हर स्वरूप विस्मयकारी है।
जवाब देंहटाएंसस्नेह सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १० अक्टूबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार श्वेता जी!
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंधरती ,सागर ,आकाश ,पर्वत ....ये सब ही तो जीवनदाता हैं ..बहुत ही खूबसूरत सृजन अनीता जी !
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