गुरुवार, अक्टूबर 9

देवियाँ

देवियाँ 


सीता, धरा की पुत्री 

भूमिजा है 

भूमि सिखाती है, कर्म का वर्तन  !

सहज ही आता है 

उनके वंशजों को 

भू, जल, और पर्वतों का  

संरक्षण !


लक्ष्मी, सागर पुत्री 

जलजा है  

जल बहना सिखाये 

उर में भक्ति जगाये  !!

जल निधियों का स्रोत 

 मन को तरल बनाये  !


 सरस्वती आकाश पुत्री 

नभजा 

गगन है ज्ञान  !

अस्पृश्य रह जाता है 

हर विषमता से 

विवेक जगाता है ! 


पर्वत पुत्री उमा 

पार्वती है !

दुर्गा बन शौर्य जगाती 

गौरी बन आनंद बरसाती ! 


यज्ञ की ज्वालाओं से 

प्रकट हुई द्रौपदी 

अग्नि करती है पावन 

महाभारत की नायिका 

सदा करे कृष्ण का अभिनंदन ! 


11 टिप्‍पणियां:

  1. हमारा दर्शन इतना गहरा है की हर बात में जीवन से जुड़ी सूक्ति है ...

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  2. हमारे देश मार्गदर्शकों को दिखे ये | सुंदर |

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  3. बहुत सुंदर, समृद्ध संस्कृति, स्त्री का हर स्वरूप विस्मयकारी है।
    सस्नेह सादर।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १० अक्टूबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  4. धरती ,सागर ,आकाश ,पर्वत ....ये सब ही तो जीवनदाता हैं ..बहुत ही खूबसूरत सृजन अनीता जी !

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