नये वर्ष में
...क्यों
न प्रवेश करें नये आयामों में
पुराने
वक्तों को उतार फेंके
ज्यों
केंचुल उतार देता है सर्प !
जो
किया है अब तक, अगर वही दोहराया
तो
क्या खाक नया साल मनाया !
उतार
फेंके चश्मा अपनी आँखों से
दुनिया
को नये ढंग से निहारें,
क्या
चाहता है वह खुदा हमसे
दिल
से पूछें, उसे शिद्दत से पुकारें !
चुभते
हैं जो सवाल भीतर
बैठ
आराम से उनके हल खोजें,
सहते
हैं जो ख्वाब नयनों में
उन्हें
साकार करने के नये अंदाज खोजें !
आदमी
होकर आये थे जहाँ में
आदमियत
की परिभाषा सीखें,
दी हैं इस कुदरत ने हजार नेमतें
उनका
शुक्रगुजार होना सीखें !
नया
वर्ष क्या यही कहने
नहीं
चला आता बार-बार,
न
दोहराएँ वे भूलें
जो
की थीं पिछली बार !
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन और कमलेश्वर में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंआदमी होकर आये थे जहाँ में
जवाब देंहटाएंआदमियत की परिभाषा सीखें,
...आज के समय की सबसे बड़ी ज़रुरत..बहुत सार्थक प्रस्तुति..नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
स्वागत व आभार कैलाश जी..
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार! मकर संक्रान्ति पर्व की शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
काश ! नया अंदाज मिल जाता ..
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