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मंगलवार, अप्रैल 20

मत लगाना दिल यहां पर

मत लगाना दिल यहां पर 


ख्वाब है यह जिंदगी इक 

यह सुना है,

मत लगाना दिल यहां पर 

यह गुना है !


आएगी इक बाढ़ जैसी 

महामारी, 

था अंदेशा कुछ दिलों को 

त्रास भारी !


डोलती है मौत या फिर  

भ्रम हुआ है, 

व्यर्थ ही तो ज्यों सभी का 

श्रम हुआ है !


क्या करेंगे कल यहां 

सूझे नहीं, 

कब थमेगी आग यह 

बूझे नहीं !


जो हो रहा वह मान लें 

हों कैद सब, 

जो पल मिले जी लें उन्हें 

दे चैन रब !


 

बुधवार, अप्रैल 14

वह मन को ख्वाब दे

वह मन को ख्वाब दे 


खोया हुआ सा लगता  

खोया नहीं है जो, 

जिसे पाने की तमन्ना 

पाया हुआ है वो ! 


वही श्वास बना तन में 

जीवन को आंच दे,

वही दौड़ता लहू संग  

वह मन को ख्वाब दे ! 


जो अभी-अभी यहीं था 

फिर ढक लिया किसी ने, 

जैसे छुप गयी किरण हो 

बदलियों के पीछे !


उसे ढूंढने न जाना 

जरा थमे रहना  

धीरे से उसके आगे 

दिले-पुकार रखना !


वह सुन ही लेता चाहे 

मद्धिम हो स्वर बहुत,  

सच्ची हो दिल की चाहत 

बस एक यही शर्त !


 

शुक्रवार, फ़रवरी 5

जाने कैसी लीला अद्भुत

जाने कैसी लीला अद्भुत 

 भोली सी मुस्कान ओढ़कर 
सेल्फी तो इक ले डाली,
पर दीवाने दिल से पूछा 
है क्या वह खुद से भी राजी !

जिसने देखे स्वप्न सलोने 
या जो ख्वाबों में रोया था, 
उस छलिया से कुछ तो पूछो 
कब वह चैन से सोया था !

‘उसको’ तो बस तकना आता 
टुकुर-टुकुर देखा करता है, 
मन बेचारा किसकी खातिर 
सुख-दुःख की लीला रचता है !

मन भोला जो लगन लगाता
जानबूझ कर अगन लगाता, 
उसकी याद में रोती मीरा 
राधा का दामन भर जाता !

जाने कैसी लीला अद्भुत 
देख-देख दुनिया हैरान,
युग-युग से जग में रहते हैं 
कभी  न उससे  हुई पहचान !

सोमवार, नवंबर 4

ख्वाब और हकीकत


ख्वाब और हकीकत 

कौन सपने दिखाए जाता है
नींद गहरी सुलाए जाता है

होश आने को था घड़ी भर जब
सुखद करवट दिलाए जाता है

मिली ठोकर ही जिस जमाने से
नाज उसके उठाए जाता है

गिन के सांसे मिलीं, सुना भी है
रोज हीरे गंवाए जाता है

पसरा है दूर तलक सन्नाटा
हाल फिर भी बताए जाता है

कोई दूजा नहीं सिवा तेरे
पीर किसको सुनाए जाता है

टूट कर बिखरे, चुभी किरचें भी
ख्वाब यूँही सजाए जाता है

मंगलवार, सितंबर 24

ख्वाबों में जो मिला है



ख्वाबों में जो मिला है


ख्वाबों में जो मिला है
बनकर हकीकत आये,
कितने किये थे सजदे
कई कुसुम भी चढ़ाये !

खोया नहीं था इक पल
बिछड़ा नहीं था खुद से,
वह छुप गया था भीतर
बाहर ही मन लगाये !

कैलाश का है वासी
पातालों में बसे हम,
रहे द्वार बंद दिल के
धारा कहाँ से जाए !

बिखरता सुवास सा वह
पाहन सा  चुभता अंतर,
भला क्यों मिलन घटेगा
बगीचे नहीं सजाये !

बादल सा भरा बैठा
मरुथल बना यह जीवन,
मन मोर बन के नाचे
तत्क्षण ही बरस जाये !

सुख सुहावनी पवन सा
लुटाता जहाँ विजन हो,
अंतर में जग भरा है
कैसे वह गीत गाये !


सोमवार, जुलाई 23

पावन प्रीत पुलक सावन की



पावन प्रीत पुलक सावन की

कितने ही अहसास अनोखे
कितने बिसरे ख्वाब छिपे हैं,
खोल दराजें मन की देखें
अनगिन जहाँ सबाब छिपे हैं !

ऊपर-ऊपर उथला है जल
कदम-कदम पर फिसलन भी है,
नहीं मिला करते हैं मोती
इन परतों में दलदल भी है !

थोड़ा सा खंगालें उर को
जाल बिछाएं भीतर जाकर,
चलें खोजने सीप सुनहरे
नाव उतारें बचपन पाकर !

पावन प्रीत पुलक सावन की
या फिर कोई दीप जला हो,
गहराई में उगता जीवन
नीरव वन में पुहुप खिला हो !

अम्बर से जो नीर बरसता
गहरे जाकर ही उठता है,
कल का सूरज जो लायेगा
वही उजास आज झरता है !  




गुरुवार, जुलाई 12

नदिया सा हर क्षण बहना है



नदिया सा हर क्षण बहना है



ख्वाब देखकर सच करना है 
ऊपर ही ऊपर चढ़ना है,  
जीवन वृहत्त कैनवास है 
सुंदर सहज रंग भरना है !

साथ चल रहा कोई निशदिन 
हो अर्पित उसको कहना है,
इक विराट कुटुंब है दुनिया 
सबसे मिलजुल कर रहना है !

ताजी-खिली रहे मन कलिका
नदिया सा हर क्षण बहना है,
घाटी, पर्वत, घर या बीहड़ 
भीतर शिखरों पर रहना है !

वर्तुल में ही बहते-बहते 
मुक्ति का सम्मन पढ़ना है,
फेंक भूत का गठ्ठर सिर से 
हर पल का स्वागत करना है !

जुड़े ऊर्जा से नित रहकर 
अंतर घट में सुख भरना है,  
छलक-छलक जाएगा जब वह 
निर्मल निर्झर सा झरना है !

शनिवार, मार्च 17

भीतर एक स्वप्न पलता है




भीतर एक स्वप्न पलता है



आहिस्ता से धरो कदम तुम
हौले-हौले से ही डोलो,
कंप न जाये कोमल है वह
वाणी को भी पहले तोलो !

कुम्हला जाता लघु पीड़ा से
हर संशय बोझिल कर जाता,
भृकुटी पर सलवट छोटी सी
उसका आँचल सिकुड़ा जाता !

सह ना पाए मिथ्या कण भर
सच के धागों का तन उसका,  
मुरझायेगा भेद देख कर
सदा एक रस है मन जिसका !

हल्का सा भी धुआं उठा तो
दूर अतल में छिप जायेगा,  
रेखा अल्प कालिमा की भी
कैसे उसे झेल पायेगा !

कोमल श्यामल अति शोभन जो
भीतर एक स्वप्न पलता है,
बड़े जतन से पाला जिसको
ख्वाब दीप बन कर जलता है !

गुरुवार, मार्च 15

किसने खिलकर किये इशारे



किसने खिलकर किये इशारे


पी पी कह कर कौन पुकारे
किसे खोजते नयन तुम्हारे,
अंतर सरस तान बन गूँजा
किसने खिलकर किये इशारे !

हल्का-हल्का सा स्पंदन है
सूक्ष्म, गहन उर का कम्पन है,
जाने कौन उसे पढ़ लेता
चुप हो कहती जो धड़कन है !

मधुर रागिनी सा जो बिखरा
रस में पगा स्वाद मिश्री का,
तृप्त करे फिर तृषा जगाए
जादूगर वह कौन अनोखा !

एक तिलस्म राज इक गहरा
किसके चाहे खुलता जाता,
साया बनकर साथ सदा है
कौन प्रीत का गीत सुनाता !

सिहरन कब सम्बल बन जाती
भटकन कब मंजिल पर लाती,
कौन ख्वाब बन झलक दिखाता
किसकी चाह पूर्णता लाती !


बुधवार, जुलाई 12

गाना होगा अनगाया गीत

गाना होगा अनगाया गीत


गंध भी प्रतीक्षा करती है
उन नासापुटों की, जो उसे सराहें
प्रसाद भी प्रतीक्षा करता है
उन हाथों की, जो उसे स्वीकार लें
जो मिला उसे बांटना होगा
होने को आये जो हो जाना होगा
गाना होगा अनगाया गीत
लुटाना होगा वह कोष भीतर छुपा   
पलकों में बंद ख्वाबों को,
रात्रि का अँधकार नहीं सुबह का उजाला चाहिए
अंतर में भरी नर्माहट को शब्दों का सहारा चाहिए
गर्माहट जो सर्दियों की धूप गयी थी भर 
अलस जो भर गयी तपती दोपहर,
उन्हें उड़ेंलना होगा
बचपन में मिले सारे दुलार को
किस्सों में सुने परी के प्यार को
चाँद पर चरखा कातती बुढ़िया
रोती-हँसती सी जापानी गुड़िया
देख-देख कर जो मुस्कान की कैद हृदय में
उसे बिखराना होगा
बारिश की पहली-पहली बौछार में
भीगने का वह सहज आनंद
हृदय में लिए नहीं जाना होगा
इस जग ने कितना-कितना भर दिया है
मनस को उजागर कर दिया है
पिता की कहानियों का वह जादूगर
जो उगाता था सोने के पेड़ और चाँदी के फल
जीवन में पाए अनायास ही वे अमोल पल
अंतहीन वक्त की कोरी चादर पर
कुछ अमोल बूटे काढ़ने हैं
राह दिखाएँ भटके हुओं को
ऐसे कई और दीपक बालने हैं !

बुधवार, फ़रवरी 8

सीधे घर वापस ले चल दी




सीधे घर वापस ले चल दी

कितने ख्वाब अधूरे मन में 
कितनी  आशाएं पलती थीं, 
मृत्यु ने दस्तक भी न दी 
सीधे घर वापस ले चल दी !

कुछ भी न कह पाये मन की 
जीवन एक अधूरी गाथा,
साथ जियेंगे साथ मरेंगे 
घबराहट में  भूला वादा  !

कितनी यात्रायें शेष थीं 
  अंतिम होगी यह  खबर किसे,
जीवन भी अभी नहीं मिला था 
भेंट अचानक हुई मौत से !

रहे भुलाये जिसको चलते 
साथ-साथ शायद चलती थी,
जीवन जिसको मान रहे थे 
भीतर ही मृत्यु पलती थी !

होश संभाले हर पल कोई 
वही इसे जान सकता है,
मीत बनाये जो मृत्यु को 
रार वही ठान सकता है !

जीवन-मृत्यु संगी साथी 
सुख-दुःख या जैसे दिन-रात,
एक साथ दूजा मिलता है 
है इतनी सी  जो समझे बात ! 

गुरुवार, फ़रवरी 2

प्रीत बहे धार सी




प्रीत बहे धार सी

मन सपने बुनता है 
फिर-फिर सिर धुनता है,
जीवन की बगिया से 
कांटे ही चुनता है ! 

जन्नत बनाने का 
भीतर सामान है, 
दोजख की आग में 
व्यर्थ ही भुनता है !

स्वयं को ही कैद करे 
झूठी दीवारों में,
ख्वाबों में गाए कभी  
गीत वही सुनता है !

मन जो ठहर जाये 
 डोर कोई थाम ले,
प्रीत बहे धार सी 
मन्त्र सा गुनता है !






शनिवार, जनवरी 7

कोई सुन रहा है


कोई सुन रहा है 
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सुन सके न गर जमाना कोई सुन रहा है 
बिखरे हुए लफ्जों को वही चुन रहा है 

दीवाना दिल सजीले जो ख्वाब बुन रहा है 
पर्दानशीं वही तो दिनरात गुन रहा है 

बिसरी हुई यादों को यदि कोई धुन रहा है
अनजान दरम्यां वह दीवार चुन रहा है

चाहत नहीं है उसकी न कोई पुन रहा है
हसरत में मन वही तो दिनरात भुन रहा है


सोमवार, दिसंबर 5

एक कोमल गीत जैसे



एक कोमल गीत जैसे 


जिंदगी हर पल नयी है 
नींव खुद हमने गढ़ी थी, 
जिन पलों की कल किसी दिन 
आज वह सम्मुख खड़ी है !

सुप्त था मन होश न था 
स्वप्न देखा बेखुदी में, 
जब मिला साकार होकर 
नींद रातों की उड़ी है !

सुखद पल जो भी  मिले हैं 
खुशनुमा से सिलसिले हैं,
ख्वाब बन कर  जो सजे थे 
उन्हीं लम्हों की लड़ी है !

एक कोमल गीत जैसे 
था छुपा अंतर कवि के 
ले रहा आकार सुंदर 
उसी रचना की कड़ी है !



सोमवार, सितंबर 26

कोष भरे अनंत प्रीत के

कोष भरे अनंत प्रीत के

पलकों में जो बंद ख्वाब हैं
पर उनको लग जाने भी दो,
एक हास जो छुपा है भीतर
अधरों पर मुस्काने तो दो !

सारा जगत राह तकता है
तुमसे एक तुम्हीं हो सकते,
होंगे अनगिन तारे नभ पर
चमक नयन में तुम ही भरते !

कोष भरे अनंत प्रीत के
स्रोत छुपाये हो अंतर में,
बह जाने दो उर के मोती
भाव सरि के संग नजर से !

जहाँ पड़ेगी दृष्टि अनुपम
उपवन महकेंगे देवों के,
स्वयं होकर तृप्ति का सागर
कण-कण में निर्झर भावों के !

मंगलवार, जनवरी 5

नये वर्ष में

नये वर्ष में

...क्यों न प्रवेश करें नये आयामों में
पुराने वक्तों को उतार फेंके
ज्यों केंचुल उतार देता है सर्प !
जो किया है अब तक, अगर वही दोहराया
तो क्या खाक नया साल मनाया !
उतार फेंके चश्मा अपनी आँखों से
दुनिया को नये ढंग से निहारें,
क्या चाहता है वह खुदा हमसे
दिल से पूछें, उसे शिद्दत से पुकारें !  
चुभते हैं जो सवाल भीतर
बैठ आराम से उनके हल खोजें,
सहते हैं जो ख्वाब नयनों में
उन्हें साकार करने के नये अंदाज खोजें !
आदमी होकर आये थे जहाँ में
आदमियत की परिभाषा सीखें,
 दी हैं इस कुदरत ने हजार नेमतें
उनका शुक्रगुजार होना सीखें !
नया वर्ष क्या यही कहने
नहीं चला आता बार-बार,
न दोहराएँ वे भूलें
जो की थीं पिछली बार !