मन 
भर
जाता भीतर उत्साह 
गायत्री
मन्त्र का उच्चार
स्यात्
सवितादेव की तरह बंटना चाहता है 
करता आह्लादित युगों-युगों
से
गंगा की लहरों का स्पर्श अंतर को
गंगा की लहरों का स्पर्श अंतर को
आत्मसागर
की ओर बहना चाहता है 
थम
जाते कदम देख फूलों का झुरमुट
बियाबान जंगल में भी
बियाबान जंगल में भी
बन
सुगंध दिग-दिगंत में उड़ना चाहता है 
लुभाती हर दीप की लौ 
 बनकर ज्योति की सुवास  मिटना चाहता है
बिखरना
सीखा पारिजात से जिसने 
सदा
ताजा ही रहेगा  बन
तोड़
दी सीमाएं, पंछी सा 
 गगन में उड़ेगा ही वह मन !

शांति का द्वार है इसका नमन
जवाब देंहटाएंप्रफुल्ल-पावनता का संचार कराती पंक्तियाँ .
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार दिगम्बर जी व प्रतिभा जी !
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