जिंदगी का गीत यूँ ही
सोचते
ही आज बीता
कल
कभी आता कहाँ,
जिंदगी
का गीत यूँ ही
छिटक
ही जाता रहा !
डर
छुपाये जी रहा जग
धुधं,
कोहरा या धुआं सा,
मांगता
रब से दुआएं
कंप
रहा मन पात सा !
नींद
में जो स्वप्न देखे
जागते
ही खो गये वे,
जग
उठे भीतर उजाला
स्वप्नवत
होगा जगत ये !
मुस्कुराती जिन्दगी तब
बाँह फैलाये मिलेगी,
हर कदम पर खिलखिलाती
गंग धारा सी बहेगी !
Bht hi badhiya !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर जीवन से भरी रचना...
जवाब देंहटाएंपल पल समय हाथ से छिटक हाई रहा है ... पर शायद यही तो जीवन भी है ...
जवाब देंहटाएंशायद यही जीवन है.. शायद इसके पार भी कुछ है..एक महाजीवन...जिसकी हमें खबर ही नहीं है..
हटाएंसुन्दर चिन्तन .
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार प्रतिभा जी !
हटाएंस्वागत व आभार संध्या जी व ओंकार जी !
जवाब देंहटाएंयही तो जीवन है
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार संजय जी !
जवाब देंहटाएं