नई कोंपलें जो फूटी हैं
कोकिल के स्वर सहज उठ रहे
जाने किस मस्ती में आलम,
मंद, सुगन्धित पवन डोलती
आने वाला किसका बालम !
गुपचुप-गुपचुप बात चल रही
कुसुमों ने कुछ रंग उड़ेले,
स्वर्ग कहाता था जो भू पर
उसी भूमि पर नफरत डोले ?
कैसा विषम काल आया है
लहू बहाते हैं अपनों का,
जिनसे अम्बर छू सकते थे
कत्ल कर रहे उन स्वप्नों का !
महादेव की धरती रंजित
कब तक यह अन्याय सहेगी,
बंद करें यह राग द्वेष का
सहज नेह की धार बहेगी !
भूल हो चुकी इतिहासों में
कब तक सजा मिलेगी उसकी,
नई कोंपलें जो फूटी हैं
क्यों रोकें हम राहें उनकी !
काश्मीर है अपना गौरव
हर भारतवासी मिल गाये,
एक बार फिर झेलम झूमे
केसर बाग़ हँसे, मुस्काए !
जाने किस मस्ती में आलम,
मंद, सुगन्धित पवन डोलती
आने वाला किसका बालम !
गुपचुप-गुपचुप बात चल रही
कुसुमों ने कुछ रंग उड़ेले,
स्वर्ग कहाता था जो भू पर
उसी भूमि पर नफरत डोले ?
कैसा विषम काल आया है
लहू बहाते हैं अपनों का,
जिनसे अम्बर छू सकते थे
कत्ल कर रहे उन स्वप्नों का !
महादेव की धरती रंजित
कब तक यह अन्याय सहेगी,
बंद करें यह राग द्वेष का
सहज नेह की धार बहेगी !
भूल हो चुकी इतिहासों में
कब तक सजा मिलेगी उसकी,
नई कोंपलें जो फूटी हैं
क्यों रोकें हम राहें उनकी !
काश्मीर है अपना गौरव
हर भारतवासी मिल गाये,
एक बार फिर झेलम झूमे
केसर बाग़ हँसे, मुस्काए !
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी
हटाएंबहुत ही सुन्दर ... नयी कोंपलें जरूर फूटेंगी और माँ भारती का भाल काश्मीर भी माह्केगा ... सुन्दर रचना है ...
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