मंगलवार, फ़रवरी 11

कुछ बातें दिल से

कुछ बातें दिल से


शिकायतें कर लीं बहुत जमाने से
सिर कहीं अब तो झुकाया जाये

बोझ ढोयें अच्छाइयों का कब तक
चलो औरों को बेहतर बताया जाये

नेकियाँ कर के भी रोये बुराई कर के भी
आखिर इन्सान को किस तरह हंसाया जाये

उमगती ख्वाहिशें सताती दिलोजान को
  किसी के दर पे उनको चढ़ाया जाये

नेमतें सौंप दे तो बढ़ती ही जाएँगी
कर के अर्पण दुःख को भी घटाया जाये

मुगालता हो गया हासिल कुछ करने का
वरना क्या है जो रब को दिखाया जाये

न कुछ अपना न कुछ हस्ती है हमारी
जान इस सच को जरा मुस्कुराया जाये



15 टिप्‍पणियां:

  1. बोझ ढोयें अच्छाइयों का कब तक
    चलो औरों को बेहतर बताया जाये ....बहुत बढिया..

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  2. न कुछ अपना न कुछ हस्ती है हमारी
    जान इस सच को जरा मुस्कुराया जाये
    इस सत्य को हर कोई कहाँ जान पाता है ... जानते हुए भी कहाँ मान पाता है ...

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  3. मुगालता हो गया हासिल कुछ करने का
    वरना क्या है जो रब को दिखाया जाये .... waah ... kya baat kahi hai .. laajawaab ashaar!

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  4. सुभानाल्लाह ..... हर शेर कितना कुछ कहता हुआ .... वाह

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  5. गज़ल की क्या कहने हैं बेहतरीन भाव अर्थ और वक्रोक्ति रूपकत्व।

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  6. जान-समझ कर अंततः मुस्कराहट आई तो चेहरे पर !

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  7. न कुछ अपना न कुछ हस्ती है हमारी
    जान इस सच को जरा मुस्कुराया जाये
    सुन्दर प्रस्तुति.सुन्दर व्यंग.

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  8. बहुत खूब कहा है जो भी कहा हर शैर नायाब। आफताब।

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  9. माहेश्वरी जी, वीरू भाई, प्रतिभा जी, महेंद्र जी, प्रीति जी, प्रतिभा जी, इमरान, सुषमा जी शालिनी जी, विनय जी, दिगम्बर जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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