शनिवार, अक्तूबर 26

ऑरोविल - प्रभात की नगरी

ऑरोविल - प्रभात की नगरी 


पांडिचेरी को पहले पुदुचेरी के नाम से जाना जाता था।तमिल भाषा के अनुसार पुदुचेरी का अर्थ है “नया शहर”।पहली शताब्दी में रोम से व्यापार के लिए प्रसिद्ध इस शहर को "पोर्ट टाउन" भी कहा जाता था। यह स्थान कभी वेदों में पारंगत विद्वानों का निवास बना था, इसलिए इसे वेदपुरी के नाम से भी जाना जाता है।उपनिवेश काल से पहले यहाँ पल्लवों का शासन था।उसके बाद  चोल तथा पांड्य राजवंशों ने तेहरवीं शताब्दी तक राज्य किया।14वीं शताब्दी के दौरान पुदुचेरी विजयनगर साम्राज्य के शासन के अधीन आया, बाद में जिसे बीजापुर के सुल्तान ने जीत लिया था। सुल्तान के शासन काल में पुर्तगाली और डेनिश व्यापारी इस स्थान को व्यापारिक केंद्र के रूप में इस्तेमाल किया करते थे


उपनिवेश काल की शुरुआत पुर्तगालियों से हुई क्योंकि वे पहले यूरोपीय व्यापारी थे. पुडुचेरी के समृद्ध व्यापार ने फ्रांसीसियों को भी आकर्षित किया और उन्होंने यहाँ एक फ्रांसीसी बस्ती बसायी। ब्रिटिश काल के दौरान भी पुडुचेरी पर फ्रांसीसियों का नियंत्रण था।एक सौ अड़तीस वर्षों के शासन के बाद अंततः 31 अक्टूबर, 1954 को यह फ्रांसीसियों से मुक्त हुआ ।वर्तमान में यह भारत का एक केन्द्रशासित प्रदेश है।


दो वर्ष पूर्व भी हम पुदुचेरी की छोटी सी यात्रा पर गये थे, जहाँ के शांत और स्वच्छ समुद्र तट, फ़्रांसीसी बस्ती, अरविंद आश्रम और ऑरोविल की यादें जब-तब पुन: आमंत्रण देती सी लगती थीं। इस बार नवरात्रि के बाद हमने चार दिनों के लिए पुदुचेरी की यात्रा का कार्यक्रम बनाया तो निश्चय किया कि ऑरोविल के भीतर स्थित किसी अतिथि निवास को ही रहने के लिये चुना जाये।ऑरिविल को सिटी ऑफ़ डॉन अर्थात प्रभात की नगरी भी कहा जाता है।यह पुदुचेरी के  निकट तमिलनाडु में स्थित चार हज़ार एकड़ में फैली एक वैश्विक, प्रायोगिक नगरी है। १९६८ में इसकी स्थापना श्री माँ द्वारा यह स्वप्न देखकर की गई थी कि यहाँ किसी भी देश के नागरिक धर्म, जाति, लिंग,राष्ट्रीयता से ऊपर उठकर बिना किसी भेदभाव के एक साथ रह सकें। इसका उद्देश्य मानवीय एकता की भावना को मूर्त रूप देना है। 


ऑरोविल आश्रम के ‘सारंगा अतिथि गृह’ में प्रवेश करते ही ऐसा लगा मानो हरियाली के सागर में आ गये हों। यहाँ पास-पास इतने अधिक पौधे, लताएँ और पेड़ लगाये गये हैं कि आकाश नज़र ही नहीं आता, वर्षा समाप्त हो जाने के बाद भी पेड़ों की शाखाओं और पत्तों से टप-टप बूँदें बरसती रहती हैं, एक नमी और गीलेपन का अहसास मन में भीतर तक उतर जाता है। एक छोटी चिड़िया मीठे स्वर में गाकर न जाने किसे पुकार रही थी। अतिथि गृह में पुराने समय के अनुसार लाल दीवारों और लाल फ़र्श वाले झोपड़ी नुमा छत वाले कमरे हैं, और हर कमरे के बाहर मिट्टी के विशाल कलात्मक घट रखे हुए हैं, जगह-जगह वृक्षों के तने के नीचे काले पत्थर की गणेश की मूर्ति स्थापित की गई है, एक स्थान पर राधा-कृष्ण व गाय-वत्स की श्वेत मूर्तियाँ भी रखी हैं, जो वातावरण को दिव्य बनाती हैं। अतिथि गृह से मुख्य सड़क पर जाने के रास्ते कच्चे हैं, जिन्हें लाल मिट्टी से समतल किया गया है, हरे-भरे घने वृक्षों के मध्य लाल घुमावदार मार्ग पैदल चलने या साइकिल चलाने के लिए आमंत्रित करते से प्रतीत होते हैं। स्वागत कक्ष के बायीं ओर कुछ बत्तख़ें विचर रही थीं, हमारे निकट जाते ही वे एक स्वर में बोलने लगीं, जैसे कोई चेतावनी दे रही हों, या कौन जाने स्वागत कर रही हों। अतिथि गृह में स्वयं भोजन बनाने की सुविधा भी प्रदान की गई है। खुला-खुला डाइनिंग हॉल छत के नीचे तथा  बाहर बगीचे तक फैला हुआ है। चारों और बाग-बगीचे हैं, जिनमें टेराकोटा के सुंदर विशाल घड़ों व गमलों में पौधे उगाये गये हैं। हम चार दिन वहाँ रहे,  हर दिन थम-थम कर वर्षा होती रही। ऑरोविल में ऐसे कई अतिथि गृह हैं। वहाँ के प्रसिद्ध सोलर किचन में दोपहर व रात्रि का भोजन किया जा सकता है, स्वादिष्ट व पौष्टिक  प्रातः राश अतिथिगृह में मिलता है। पूरे आश्रम में  कैश के रूप में धन का उपयोग नहीं किया जाता है, हर अतिथि को ज़रूरत के अनुसार मूल्य का एक ऑरो कार्ड दिया जाता है,  जो हर जगह इस्तेमाल कर सकते हैं। 


क्रमश:


6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द सोमवार 28 अक्टूबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  2. सुंदर यात्रा वृतांत।
    अगले अंक की प्रतीक्षा...

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    1. स्वागत व आभार रूपा जी, अगला अंक हाज़िर है

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