फूलों से नहीं दुआ-सलाम
दुनिया दुख का दूसरा नाम
कहते आये सुबह औ'शाम,
देख न पाये उड़ते पंछी
फूलों से नहीं दुआ-सलाम !
जान-जान कर कुछ कब आया
प्रेम लहर इक भिगो गयी उर,
एक सफ़र पर सबको जाना
मिटने से क्यों लगता है डर !
माना अभी-अभी आये हैं
दूर अतीव दूर जाना है,
इक दिन तो मंज़िल आएगी
गीत पूर्णता का गाना है !
एक बीज से वृक्ष पनपता
एक अणु में नृलोक समाया,
एक कोशिका से जन्मा नर
तन में सारा ज्ञान छिपाया !
सत्य देखना जिस दिन सीखा
शृंग हिमालय के उठ आये,
मन के पार उगे हैं उपवन
कुंज गली में श्याम समाये !
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द शनिवार 09 नवंबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार दिग्विजय जी!
हटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंSundar rachana!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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