इस उमंग का राज छुपा है
जाने क्यों दिल डोला करता
नहीं किसी को तोला करता,
जब सब उसके ही बंदे हैं
भेद न कोई भोला करता !
नयना चहक रहे क्यों आखिर
अधरों पर स्मित ठहरी कब से,
जन्मों का क्या मीत मिला है
थिरक रहे हैं कदम तभी से ?
रुनझुन सी बजती है उर में
गुनगुन सी होती अंतर में,
छुप-छुप किसके मिले इशारे
निकल गया दिल किसी सफर में !
टूटी-फूटी गढ़ी इबारत
हाल बयां क्योंकर हो पाये,
मीरा भी दिखा नहीं पायी
राम रतन नजर कहाँ आये !
रुनझुन सी बजती है उर में
जवाब देंहटाएंगुनगुन सी होती अंतर में,
छुप-छुप किसके मिले इशारे
निकल गया दिल किसी सफर में ...
इश्वर के स्वर की रुनझुन मन को सुनाई पड़ती है और अनजाना मन फिर कुछ सोच समझ कहाँ पाता है ... सुन्दर भावाव्यक्ति ... अंतस तक जाती है ...
स्वागत व आभार दिगम्बर जी ! सही कहा है आपने उस अनाम की पुकार ऐसी ही होती है
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