माया की माया
जो देख सकती है, वह आँख
नहीं जानती भले-बुरे का भेद
जो देख नहीं सकती, वह आत्मा
सब जानती है, फिर भी गिरती
है गड्ढ में !
जो सुन सकता है, वह कर्ण
नहीं जानता सच-झूठ का भेद
जो सुन नहीं सकती, वह आत्मा
सब जानती है, फिर भी गिरती
है भ्रम में !
देह और आत्मा के मध्य कोई
है
जो नहीं चाहता आँख देखे वही
जो भला है
श्रवण सुनें वही जो हितकर
है
‘माया’ शब्द मात्र नहीं एक
सत्ता है
जिसके बल पर चल रहा है
सृष्टि का यह खेल अनंत
युगों से !
स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 4.4.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3295 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सहित
बहुत बहुत आभार !
हटाएंमाया ... ये माया ही है जो सब कुछ देखते हुए भी नहीं देखने देती ...
जवाब देंहटाएंसुनते हुए नहीं सुनाना चाहती ... पर इस माया से कोई पार कहाँ पा पाता है ... मायावी रचना ...
सही कहा है आपने, जानते-बूझते भी जो हम आदत वश करते हैं, माया का ही चक्कर है..स्वागत व आभार !
हटाएंजो देख सकती है, वह आँख
जवाब देंहटाएंनहीं जानती भले-बुरे का भेद
जो देख नहीं सकती, वह आत्मा
सब जानती है, फिर भी गिरती है गड्ढ में !
सच है !!!