कुसुमों में सुगंध के जैसा
राग नया हो ताल नयी हो
कदमों में झंकार नयी हो,
रुनझुन रिमझिम भी पायल की
उर में करुण पुकार नयी हो !
अभी जहाँ विश्राम मिला है
बसे हैं उससे आगे राम,
क्षितिजों तक उड़ान भर ले जो
हृदय को पंख लगें अभिराम !
अतल मौन से जो उपजा हो
सृजित वही हो मधुर संवाद,
उथले-उथले घाट नहीं अब
गहराई में पहुंचे याद !
नया ढंग अंदाज नया हो
खुल जाएँ जो बंद हैं द्वार ,
नये वर्ष में गीत नया हो
बरसे बरबस सरस उपहार !
अंजुरी भर-भर बहुत पी लिया
अमृत घट वैसा का वैसा,
अब अंतर में भरना होगा
कुसुमों में सुगंध के जैसा !