हरसिंगार के फूल झरे
हौले से उतरे शाखों से
बिछे धरा पर श्वेत केसरी
हरसिंगार के प्रसून झरे !
रूप-रंग, सुगंध की निधियां
लुटा रहे भोले वैरागी
शेफाली के पुष्प नशीले !
प्रथम किरण ने छूआ भर था
शरमा गए, झर– झर बरसते
सिउली के ये कुसुम निराले !
कोमल पुष्प बड़े शर्मीले
नयन खोलते अंधकार में
उगा दिवाकर घर छोड़ चले !
छोटी सी केसरिया डाँडी
पांच पंखुरी श्वेत वर्णीय
खिल तारों के सँग होड़ करें !
मदमाती सुवासित सौगात
बाँट रहे हैं मुक्त हृदय से
मीलों तलक फिजां महकाते !
हर सिंगार के फूल स्वयं अपने होने का एहसास करा जाते हैं जब पूरी फिजां को उन्मुक्त हो के महका जाते हैं ... पुष्प के निखार को, उसकी खूबसूरती को बाखूबी लिखा है आपने ... बहुत सुन्दर रचना ...
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 19 अगस्त 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 20 अगस्त 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुंदर सरस हरसिंगार का वर्णन।
जवाब देंहटाएंवाह!!प्रकृति की सुंदर सौगात का भावपूर्ण चित्रण किया है सखी आपनें !
जवाब देंहटाएंहरसिंगार की तरह मनभावन रचना..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भावमय करती पंक्तियां ...लाजवाब प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएं