उमग-उमग फैले सुवास इक
भीतर ही तो तुम रहते हो
खुद से दूरी क्यों सहते हो,
जल में रहकर क्यों प्यासे हो
खुद ही खुद को क्यों फाँसे हो !
भीतर एक हँसी प्यारी है
सुनी खनक न किसी ने जिसकी,
भीतर फैला खुला आकाश
जगमग जलती ज्योति अनोखी !
फूट-फूट कर बहे उजाला
छलक-छलक जाये ज्यों प्याला,
उमग-उमग फैले सुवास इक
दहक-दहक ज्यों जल अंगारा !
मस्ती का मतवाला सोता
झर-झर झरता निर्मल निर्झर,
एक अनोखी सी दुनिया है
ईंट-ईंट बनी जिसकी प्यार !
ऐसे उसकी याद झलकती
तारों भरा नीला आकाश,
बिन बदली बरसे ज्यों सावन
बिन दिनकर हो पावन प्रकाश !
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (02-08-2019) को "हरेला का त्यौहार" (चर्चा अंक- 3416) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
सरस सुंदर भावों का सुंदर ताना-बाना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंइस उमग को जगाए रखने के लिए साधुवाद अनीता जी
जवाब देंहटाएंब्लॉग पंच में आपकी इस शानदार पोस्ट की चर्चा की गई है | ब्लॉग लेखको की पोस्ट ज्यादा लोगो तक पहुंचे यही कारण से शूरू किया है " ब्लॉग पंच " कृपया एक बार देखकर अपनी राय वहाँ जरुर रखे https://bit.ly/338eELo
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ,
बिन दिनकर हो प्रकाश ...
जवाब देंहटाएंसच है की अंतस में ही है सब कुछ ... चिरायु आनत अजर जो विधमान है उसेसे साक्षात्कार हो जाये तो सब कुछ संभव है ...