टूटी अंतर की हर कारा
जिस क्षण तजा प्रमाद मनस ने
एक उमंग सहज भर जाती,
कुछ पाने की मिटी चाह जब
हर दुविधा भी संग मर जाती !
एक उमंग सहज भर जाती,
कुछ पाने की मिटी चाह जब
हर दुविधा भी संग मर जाती !
लोभ-लाभ की भाषा भूली
प्रतिद्वंद, स्पर्धा भी छूटे,
चित्त उदार बनेगा, उस क्षण
आनंद घट हृदय में फूटे !
प्रतिद्वंद, स्पर्धा भी छूटे,
चित्त उदार बनेगा, उस क्षण
आनंद घट हृदय में फूटे !
कंपित था भयभीत हुआ मन
खो जाए ना प्रेम किसी क्षण,
अभय मिला बाँटा भी सबको
शुभ का निर्झर फूटा उर में !
खो जाए ना प्रेम किसी क्षण,
अभय मिला बाँटा भी सबको
शुभ का निर्झर फूटा उर में !
भय की इक चट्टान पड़ी थी
रोक रही थी प्रेमिल धारा,
राह उसी की चला दो कदम
टूटी अंतर की हर कारा !
रोक रही थी प्रेमिल धारा,
राह उसी की चला दो कदम
टूटी अंतर की हर कारा !
दुःख के बादल सदा घिरे थे
सुख का सूरज कब दिखता था,
जब से झुका हृदय चरणों पर
मिटा विषाद अमोद बहा था !
सुख का सूरज कब दिखता था,
जब से झुका हृदय चरणों पर
मिटा विषाद अमोद बहा था !
जवाब देंहटाएंदुःख के बादल सदा घिरे थे
सुख का सूरज कब दिखता था,
जब से झुका हृदय चरणों पर
मिटा विषाद अमोद बहा था !
..अंतर्मन में झांकती और चितन मनन को प्रेरित करती सुंदर रचना।
स्वागत व आभार जिज्ञासा जी!
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (02-08-2021 ) को भारत की बेटी पी.वी.सिंधु ने बैडमिंटन (महिला वर्ग ) में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचा। (चर्चा अंक 4144) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत बहुत आभार!
हटाएंसारगर्भित सृजन, साधुवाद!!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार अनुपमा जी!
हटाएंहृदय बस झुक रहा है और नीरवता पसरी जा रही है .... अति सुन्दर भाव ।
जवाब देंहटाएंस्वागत है अमृता जी !
हटाएंबहुत सटीक और सही कहा आपने।
जवाब देंहटाएंजिस क्षण तजा प्रमाद मनस ने
एक उमंग सहज भर जाती,
कुछ पाने की मिटी चाह जब
हर दुविधा भी संग मर जाती !
सार्थक संदेश देती अभिनव रचना।
स्वागत व आभार!
हटाएंबेहद खूबसूरत सृजन
जवाब देंहटाएंभय की इक चट्टान पड़ी थी
जवाब देंहटाएंरोक रही थी प्रेमिल धारा,
राह उसी की चला दो कदम
टूटी अंतर की हर कारा !
अंतर्मन की जकड़न खत्म हो तो मन स्वच्छन्द हो जाय । बहुत खूबसूरत रचना
आप सभी सुधीजनों का स्वागत व आभार !
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