संकरा है वह द्वार प्रभु का
क्रिसमस उसकी याद दिलाता
जो भेड़ों का रखवाला था,
आँखें करुणा से नम रहतीं
मन जिसका मद मतवाला था !
जो गुजर गया जिस घड़ी जहाँ
फूलों सी महकीं वे राहें,
दीनों, दुखियों की आहों को
झट भर लेती उसकी बाहें !
सुन यीशू उपदेश अनोखे
भीड़ एक पीछे चलती थी,
अधिकार से भरे कहते थे
चकित हुई सी वह गुनती थी !
नहीं रेत पर महल बनाओ
जो पल भर में ही ढह जाते,
चट्टानों पर नींव पड़ी तो
गिरा नहीं सकतीं बरसातें !
यहाँ मांगने से मिलता है
खोला जाता है सदा द्वार,
ढूँढेगा जो, पायेगा ही
लुटाने को प्रभु है तैयार !
कितने रोगी स्वस्थ हुए थे
अनगिन को दी उसने आशा,
तूफानों को शान्त किया था
अद्भुत थी जीसस की भाषा !
प्रभु के प्यारे पुत्र कहाते
जन-जन की पीड़ा, दुःख हरते,
एक बादशाह की मानिंद
संग शिष्य के डोला करते !
जो कहते थे, पीछे आओ
सीखो तुम भी मानव होना,
बेटा हूँ प्रिय परमेश्वर का
मार्ग जानता सहज स्वर्ग का !
संकरा है वह द्वार प्रभु का
उससे ही होकर जाना है,
यीशू ने जो बात कही थी
हमको उसे आज़माना है !
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(26-12-21) को क्रिसमस-डे"(चर्चा अंक4290)पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंमैरी क्रिसमस ☃️
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सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंबहुत बहुत आभार !
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