शुक्रवार, फ़रवरी 4

पंछी, तुम और वसंत

पंछी, तुम और वसंत 
मदमाता वसंत ज्यों आया 
कुदरत फिर से नयी हो गयी, 
मधु के स्रोत फूट पड़ने को 
नव पल्लव नव कुसुम पा गयी !

भँवरे, तितली, पंछी, पौधे 
हुए बावरे सब अंतर में, 
कुछ रचने जग को देने कुछ 
आतुर सब महकें वसंत में !

 याद तुम्हें वह छोटी चिड़िया 
नीड़ बनाने जो आयी थी, 
संग सहचर चंचु प्रहार कर 
छिद्र तने में कर पाई थी ! 

वृत्ताकार गढ़ते घोंसला 
हांफ-हांफ कर श्रम सीकर से, 
बारी-बारी भरे चोंच में 
छीलन बाहर उड़ा रहे थे !

आज पुनः निहारा  दोनों को 
स्मृतियाँ कुछ जागीं अंतर में, 
कैसे मैंने ली तस्वीर 
प्रेरित कैसे किया तुम्हीं ने ! 

 देखा करतीं थी खिड़की से 
 क्रीडा कौतुक उस पंछी का, 
 मित्र तुम्हारा’ आया देखो 
कहकर देती मुझको उकसा !

कैद कैमरे में वह पंछी 
नीली गर्दन हरी पांख थी, 
तुमने मनस नयन से देखा 
लेंस के पीछे यह आँख थी !

10 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०५ -०२ -२०२२ ) को
    'तुझ में रब दिखता है'(चर्चा अंक -४३३२)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. वाह , खूब बसंत छाया । सुंदर अभिव्यक्ति ।

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  3. वाह, बहुत मार्मिक वर्णन बसंत ऋतु के आगमन का, बहुत-बहुत बधाई बसंत पंचमी की 🙏

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  4. वाह! बसंत का बहुत ही खूबसूरत वर्णन!
    बसंत पंचमी की हार्दिक हार्दिक हार्दिक शुभकामनाएं💐

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    उत्तर
    1. स्वागत है मनीषा जी, आपको भी बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ!

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  5. मधुर स्मृतियों से सुसज्जित मनोरम शब्द चित्र प्रिय अनीता जी 👌🙏

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