चलना है हमको नव पथ पर
देश, प्रदेश, शहर, गाँव सभी
बुला रहे हैं हसरत भर कर,
हाथ मिला लें, कदम बढ़ा लें
चलना है हमको नव पथ पर !
माना लंबी राह सामने
निकल पड़ें हम साथ डगर पर,
इक दूजे का हाथ थामते
सारा जग लगता आँगन घर !
बनें चेतना की चिंगारी
जगमग दीप जलाएँ मिलकर,
ज्योति उस करुणामयी माँ की
चलती फिरती आग बनें फिर !
भस्म करे सारी भय बाधा
पथ प्रशस्त कर दे जीवन का,
बाहर भीतर भेद मिटा दे
पावन वही प्रकाश बनें हम !
चाहे दुःख की ज्वालाएँ हों
शीतल सावन हो अंतर में,
जो न कभी कम हो बहने से
नयनों का उल्लास बनें हम !
स्वागत व आभार ज्योति जी!
जवाब देंहटाएंआशा और उम्मीद के इस नव्पथ पर सभी की यात्रा सुखमय हो ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना है ...
उमंग का संचार करती हुई कृति।
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