जीवन मधुरिम काव्य परम का
फिरे सहज श्वासों की माला
हम भाव सुगंध बनें,
जीवन मधुरिम काव्य परम का
इक सरस प्रबंध बनें !
जगती के इस महायज्ञ में
आहुतियाँ अपनी हों,
निशदिन बंटता परम उजास
मेधा शक्ति ज्योति हो !
शब्द गूँजते कण-कण में नित
बाँचें ज्ञान ऋचाएं,
चेतन हो हर मन सुन जिसको
गीत वही गुंजायें !
शुभता का ही वरण सदा हो
सतत जागरण ऐसा,
अधरों पर मुस्कान खिला दें
हटें आवरण मिथ्या !
उसकी क्षमता है अपार फिर
क्यों संदेह जगाएं,
त्याग अहंता उन हाथों की
कठपुतली बन जाएँ !
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31- 3-22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4386 दिया जाएगा| चर्चा मंच पर आपकी उपस्थिति चर्चाकारों का हौसला बुलंद करेगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबाग
बहुत बहुत आभार !
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 31 मार्च 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
सुंदर सराहनीय प्रेरक रचना ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार जिज्ञासा जी !
हटाएंबहुत खूब!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंओंकार जी व मनोज जी, स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएं