हर पल फूलों सा खिल महके
धूप खिली है उपवन-उपवन
पल में जग सुंदर कर जाये,
जैसे हवा बँट रही कण-कण
क्या करने से हम बँट जाएँ !
हँसी बिखेरें, प्रेम लुटा दें
मुस्कानों की लहर उठा दें,
हर पल फूलों सा खिल महके
जीवन को इक खेल बना दें !
उलझ न जाएँ किसी कशिश में
नयी ऊर्जा खोजें भीतर,
बहती रहे हृदय की धारा
अंतर में ही बसा समुन्दर !
कुछ भी छुपा नहीं उस रब से
यह पल भी उपहार बना लें,
ईश्वर अंश जीव अविनाशी
इसी सूत्र को सत्य बना लें !
वाह अनमोल रचना !!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार अनुपमा जी !
हटाएंआपकी लिखी रचना सोमवार २३ मई 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
बहुत बहुत आभार संगीता जी !
हटाएंबेहद खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबेहतरीन सृजन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंजी उम्दा रचना आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत प्रेरक भाव लिए सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंनि: शब्द की तरफ ये इंगति अमोल है। सत्य सूत्र से पहचान करवाना भी इतना सरल नहीं है, जो आप हमें करवाती रहती हैं।
जवाब देंहटाएंसत्य सूत्र की जिसे हल्की सी भी झलक मिल जाती है, उसके पास इसके सिवा कोई काम बचता ही नहीं कि औरों को भी उसकी झलक दिखाए, जैसे आप भी कर रही हैं!
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