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शुक्रवार, जुलाई 25

गूँज किसी निर्दोष हँसी की

गूँज किसी निर्दोष हँसी की 


खन-खन करती पायलिया सी 

मधुर रुनझुनी घुँघरू वाली, 

खिल-खिल करती हँसी बिखरती 

ज्यों अंबर से वर्षा होती !

 

अंतर से फूटे ज्यों झरना 

अधरों से बिखरे ज्यों नगमा,

कानों को भी भरे हर्ष से 

अंतर को भी गुदगुद करती !

 

गूँज किसी निर्दोष हँसी की 

याद बनी इक  दिल में बसती,

कभी भिगोती आँखें बरबस 

कभी हृदय को भी नम करती !


रविवार, दिसंबर 8

तू

तू 


तू चाहता है 

मैं तुझे सुनूँ 

इसीलिए तूने मेरे कानों में संगीत भर दिया 

तू चाहता है 

मैं तुझे पढ़ूँ 

इसीलिए तूने 

मेरे हाथों में किताबें थमा दीं 

तू चाहता है 

मैं तुझे लिखूँ 

इसीलिए तूने 

मेरे जीवन में चाहत भर दी 

तू चाहता है 

मैं तुझे चाहूँ 

इसीलिए तूने मेरे मन में 

हँसी का बीज बो दिया 



रविवार, जुलाई 16

शायद

शायद 

तुम्हें पता नहीं है 

 तुम बहुत दिनों से मुस्कुराए नहीं हो 

खिल जाता था तुम्हारा चेहरा 

पहले जिन्हें देखकर 

अब हँसना तो दूर 

लगता है नाराज़ हो किसी से 

या शायद ख़ुद से 

छोटी-छोटी बातों पर 

खिलखिला कर हंस देते थे 

तुम्हारी वह निश्चल हँसी

पैसे कमाने में कहीं खो गई

तरक़्क़ी की चाह में बह 

मुस्कान भी छोटी होती गई 

तुम्हें ज्ञात ही नहीं 

किस बात पर ख़फ़ा हो 

 अच्छी नहीं लगती 

किसी की कोई सलाह तुम्हें

 कहीं हो न जाओ और उदास

किसी को कुछ कहते भी तुमसे 

डर लगता है 

लेकिन एक बार तो 

ज़ोर से खिलखिलाओ 

दिल बार-बार कहता है ! 


आज की पीढ़ी पता नहीं किस दौड़ में शामिल होकर जीना ही भूल गई है

आभासी दुनिया में रहते-रहते वास्तविक जीवन की छोटी-छोटी ख़ुशियों को नज़र अंदाज़ कर रही है।



रविवार, मई 22

हर पल फूलों सा खिल महके

 हर पल फूलों सा खिल महके

धूप खिली है उपवन-उपवन

पल में  जग सुंदर कर जाये, 

जैसे हवा बँट रही कण-कण 

क्या करने से हम बँट जाएँ !


हँसी बिखेरें, प्रेम लुटा दें 

मुस्कानों की लहर उठा दें, 

हर पल फूलों सा खिल महके 

जीवन को इक खेल बना दें !


उलझ न जाएँ किसी कशिश में 

नयी ऊर्जा खोजें भीतर,

बहती रहे हृदय की धारा 

अंतर में ही बसा समुन्दर !


कुछ भी छुपा नहीं उस रब से 

यह पल भी उपहार बना लें, 

ईश्वर अंश जीव अविनाशी 

इसी सूत्र को सत्य बना लें !


रविवार, सितंबर 19

​​​​​​एक हँसी भीतर सोयी है

​​​​​​एक हँसी भीतर सोयी है 


रुनझुन-झुन धुन जहाँ गूंजती

एक मौन भीतर बसता है,

मधुरिम मदिर ज्योत्सना छायी

नित पूनम निशिकर  हँसता है !


निर्झर कोई सदा बह रहा 

एक हँसी भीतर सोयी है, 

अंतर्मन की गहराई में 

मुखर इक चेतना सोयी है !


जैसे कोई पता खो गया 

एक याद जो भूला है मन, 

भटक रहा है जाने कब से 

सुख-दुःख में ही झूला है तन !


ज्यों इक अणु की गहराई में 

छिपी ऊर्जा  है अनंत इक, 

एक हृदय की गहराई में 

छिपा हुआ है ​​​​कोई रहबर !



गुरुवार, जुलाई 8

एक हँसी दिल में खिलती है


एक हँसी दिल में खिलती है 


एक अगन भीतर जलती है 
जला दें जाले पड़े जो मन 
पर, हसरत यही मचलती है !

एक लगन भीतर पलती है
पार करें हर इक बाधा को,  
मेधा भी तभी निखरती है ! 

एक आस मन में बसती है 
वैर मिटे आपसी दिलों से, 
प्रकृति यह तभी सवंरती है !

एक हँसी दिल में खिलती है 
गहराई में मोती मिलते, 
हर हलचल वहाँ ठहरती है !


गुरुवार, अगस्त 1

उमग-उमग फैले सुवास इक


उमग-उमग फैले सुवास इक


भीतर ही तो तुम रहते हो
खुद से दूरी क्यों सहते हो,
जल में रहकर क्यों प्यासे हो
खुद ही खुद को क्यों फाँसे हो !

भीतर एक हँसी प्यारी है
सुनी खनक न किसी ने जिसकी,
भीतर फैला खुला आकाश
जगमग जलती ज्योति अनोखी  !

फूट-फूट कर बहे उजाला
छलक-छलक जाये ज्यों प्याला,
उमग-उमग फैले सुवास इक
दहक-दहक ज्यों जल अंगारा !

मस्ती का मतवाला सोता
झर-झर झरता निर्मल निर्झर,
एक अनोखी सी दुनिया है
ईंट-ईंट बनी जिसकी प्यार !

ऐसे उसकी याद झलकती
तारों भरा नीला आकाश,
बिन बदली बरसे ज्यों सावन
बिन दिनकर हो पावन प्रकाश !


गुरुवार, फ़रवरी 26

वह हँसी

वह हँसी


परमात्मा सबसे बड़ा विदूषक है
वह जिसे कहते हैं न हंसोड़ !
उसने पट्टी बाँध दी है आँखों पर
और छोड़ दिया है स्वयं को खोजने के काम में
कभी कोई खोल देता है आवरण
तो खिलखिला कर हँस देता है
व्यर्थ के जंजाल से उबर कर
 वही चैन की नींद सोता है

छ्न्न से फूट पडती है हँसी
जब स्वप्न से जग जाता है कोई रात आधी
हमीं थे जो खुद को दौड़ाए जा रहे थे
शेर बनकर खुद को खाए जा रहे थे
और दिन में जो स्वप्न बुने चले जाता है कोई
टूटें...तब भी ऐसा ही हँस देना होगा
जानता है जो... वही असल में जीता है


मंगलवार, सितंबर 23

हँसना यहाँ गुनाह है


हँसना यहाँ गुनाह है



लगा दो पहरे खुशियों पर
क्यों मनुआ बेपरवाह है
हँसना यहाँ गुनाह है !

खुश रहना क्योंकर सीखा है
यह तो गमों की बस्ती है,
आँसूं ही भाते हैं जग को
नहीं हँसी की हस्ती है !

पर काट दो उम्मीदों के
क्यों उड़ने की चाह है
हँसना यहाँ गुनाह है !

पलकों पर क्यों पुष्प सजाये
अविरत पीड़ा बहने दो,  
मुखर हुए क्यों नयन बोलते
चुप ही इनको रहने दो !

पुनः बांध लो जंजीरों को
लम्बी अति यह राह है
 हँसना यहाँ गुनाह है !






गुरुवार, अप्रैल 24

गुलाब और वह

गुलाब और वह


पूछा गुलाब से
 उसकी ख़ुशी का राज
काँटों में भी मुस्कुराने का
देख अनोखा अंदाज
रंगो-खुशबू की कर रहा था
अनायास ही बरसात
धूप-हवा पानी में
झूमता दिन रात !

बोला, उससे पहले
हँस दिया खिलखिला कर  
हुई दिशाएं लाल
उसकी मोहक अदा पर
चाहा सदा ही गुलाब होना
होकर कभी न पछताया
नहीं कुछ अन्यथा होने का
भाव भी मन में आया
सत्य हूँ सत्य को स्वीकारता
जैसा हूँ उसे ही अपना होना मानता !

चौंका वह बात सुन गुलाब की
कुछ और हो जाने की
जो भीतर जलती थी आग
हो आई बड़ी ही शिद्धत से याद
अचानक उतर गया कोई बोझ भारी मन से
भर गया कण-कण किसी अनजानी पुलक से
एक गहरी मुस्कान भीतर से सतह पर आई
जन्मों से छिपी थी जो तृप्ति छलक आई !




शुक्रवार, जुलाई 26

वह क्षण

वह क्षण

दूधिया प्रकाश सी.. झक सफेद
अधरों से छलकी
नयनों से बरसी
तुम्हारी हँसी जिस क्षण
थम गया है वह क्षण वहीं !

तुम्हें याद है
कुनमुनी आँखों से
खिड़की से झांकते
बाल सूर्य को तक
नूतन प्रकाश में
डूबे उतराए संग-संग क्षण भर
वहीं खड़ा है वह क्षण अब भी !

हजारों बल्बों का प्रकाश
 सिमट आया था
तुम्हारी आँखों में
खिल गये थे हजारों
गुलाब अधरों पर
मुझे याद है
क्योकि जिए थे हजारों जीवन
 उस एक क्षण में

वह कहीं नहीं गया है !

शुक्रवार, अक्टूबर 7

कोई है


कोई है

सुनो ! कोई है
जो प्रतिपल तुम्हारे साथ है
तुम्हें दुलराता हुआ
सहलाता हुआ
आश्वस्त करता हुआ !

कोई है
जो छा जाना चाहता है
तुम्हारी पलकों में प्यार बनकर
तुम्हारे अधरों पर मुस्कान बनकर
तुम्हारे अंतर में सुगंध बनकर फूटना चाहता है ! 

कोई है
थमो, दो पल तो रुको
उसे अपना मीत बनाओ
खिलखिलाते झरनों की हँसी बनकर जो घुमड़ रहा है
तुम्हारे भीतर उजागर होने दो उसे ! 

कोई है
जो थामता है तुम्हारा हाथ हर क्षण
वह अपने आप से भी नितांत अपना
बचाता है अंधेरों से ज्योति बन के समाया है तुम्हारे भीतर
उसे पहचानो
सुनो ! कोई है