अमी प्रेम का
जब बन जाता है मन
कोरे कागज सा
तब उकेर देता है अस्तित्त्व
उस पर एक ऐसी इबारत
जो पढ़ी नहीं जाती
महसूस होती है
हवा की तरह नामालूम सी
सर्दियों के सूरज की मानिंद
नर्म और गर्म
परों सा हल्का होकर
उड़ने लगता है
मन का पंछी
न ही अतीत का गट्ठर
न भावी का डर
अनंत की सुवास भरे
खिलने लगता है
स्मृति इक जंजीर है
विकल्प इक आवरण
रिक्त हुआ जब घट बासी जल से
तब भर देता है अस्तित्व
अमी प्रेम का सुमधुर
एक घूँट पर्याप्त है
उस रस स्रोत में डूबने के लिए
कोई जाने या न जाने
उस के भीतर भी यही
तलाश है
चखने की चाह जिसे
वह जीवन प्रकाश है !
प्रेम को परिभाषित करती सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26-05-22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4442 में दिया जाएगा| चर्चा मंच पर आपकी उपस्थित चर्चाकारों का हौसला बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
बहुत बहुत आभार !
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 26 मई 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
बहुत बहुत आभार !
हटाएंचखने की चाह जिसे
जवाब देंहटाएंवह जीवन प्रकाश है !
सुंदर..
सादर..
रिक्त हुआ जब घट बासी जल से
जवाब देंहटाएंतब भर देता है अस्तित्व
अमी प्रेम का सुमधुर
एक घूँट पर्याप्त है
उस रस स्रोत में डूबने के लिए
बहुत सुन्दर भावसिक्त कृति ।
वाह!सराहनीय सृजन।
जवाब देंहटाएंकल-कल बहता अंतस को छूता... वाह!
मन को छूती सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंवाह
रुहानी अहसास!!!
जवाब देंहटाएंसंगीता जी, यशोदा जी, मीना जी, अनीता जी, ज्योति जी व विश्वमोहन जी आप सभी का स्वागत व हृदय से आभार !
जवाब देंहटाएंये तो ऐसी घूँट है कि जितना पियो, प्यास और बढ़ जाती है। अमी पान कराने के लिए बस हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंशत प्रतिशत सही कह रही हैं आप!
हटाएंबहुत सुंदर हर शब्द मोहक
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार भारती जी!
हटाएंबेहद खूबसूरती से लिखा गया है
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