लहर उठी सागर से कोई
तू मुझमें ही वास कर रहा
या मैं तेरे घर हूँ आया ?
रहना-आना दोनों मिथ्या
एक तत्व है कौन पराया !
लहर उठी सागर से कोई
अगले पल उसमें जा खोयी,
पल भर का इक नर्तन करके
निज स्वरूप में जाकर सोयी !
मेरा होना तुझसे ही है
तू ही मैं बनकर खेले है,
एक तत्व अखंड शाश्वत नित
दिखते जीवन के मेले हैं !
दर्शक बनकर देख रहा तू
कैसे माया लीला रचती,
मन खुद को सर्वस्व समझता
अंतर को फिर व्याकुल करती !
वाह ! बेहतरीन अभिव्यक्ति ! अति सुन्दर !
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार साधना जी!
हटाएंबहुत बहुत आभार कामिनी जी!
जवाब देंहटाएंएक तत्व अखंड शाश्वत नित
जवाब देंहटाएंदिखते जीवन के मेले हैं !---- बेहतरीन
वाह
जवाब देंहटाएं