सोमवार, नवंबर 28

सदा पुकारे जाता था वह

 सदा पुकारे जाता था वह

​​बढ़े हाथ को थामा जिसने 

पग-पग  में जो सम्बल  भरता,  

वही परम हो लक्ष्य हमारा 

अर्थवान जीवन को करता !


जन्मों से जो खोज चल रही 

अनजाने में हदें टटोलें, 

उसी प्रेम की है तलाश जो 

अंतर मन का पट जो खोले !


अब जाकर तो भान हुआ है 

सदा पुकारे जाता था वह, 

ठुकराया था भ्रमित हृदय ने 

अपनी निजता में सिमटे रह !


वही प्रेम वह  कोमल  करुणा

सहज  शांति, क्षमता भी देता, 

रग-रग में उल्लास जगाकर 

अर्थ अनंत  जगत  में भरता !


वही ध्येय वह प्राप्य बने जब 

शेष सहायक बन जाता है, 

वरना आते-जाते जग में 

निष्फल स्वेद बहा जाता है !




11 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-11-22} को "उम्र को जाना है"(चर्चा अंक 4622) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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  2. वही प्रेम वह कोमल करुणा
    सहज शांति, क्षमता भी देता,
    रग-रग में उल्लास जगाकर
    अर्थ अनंत जगत में भरता !
    .. सच प्रेम और करुणा से मनुष्य में सहजता और शांति का निवेश होता है, सुंदर भवाभिव्यक्ति।

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  3. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 30 नवम्बर 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. ईश्वर के प्रति आपकी भक्ति भावना से पूरित इस सुंदर प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार अनंता जी!

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