जिसने भी पहचाना सच को  
मानस हंस ध्यान के मोती 
चुन-चुन कर नित पुलकित होता, 
सुमिरन की डोरी में जिसको 
अंतर मन लख, निरख पिरोता !
मुस्कानों में छलक उठेगी  
सच्चे मोती की शुभ आभा, 
जिसने भी पहचाना सच को  
दुनिया में है वही सुभागा !
ध्यान बिना अंतर मरुथल सम  
मन पंछी भी फिरे उदासा,
रस की भीनी धार बहेगी  
वह लेकिन प्यासा का प्यासा !
कोई भीतर डुबकी मारे 
छू भी लेता बस उस घट को, 
अमीय छलके जहाँ  निरन्तर 
खोले जब उर घूँघट पट को !
ध्यान बरसता कोमल रस सा 
कण-कण काया का भी हुलसे, 
खोजें इक सागर गहरा सा 
व्यर्थ त्रिविध आतप  में झुलसें !
तृप्त हुआ जब मन का सुग्गा 
केवल इक ही नाम रटेगा, 
कृत-कृत्य हो जगत में डोले 
जैसे मन्द समीर बहेगा !
या सुवास बनकर  फैलेगा  
जगती के इस सूनेपन में, 
शब्द सहज झरेंगे जैसे 
पारिजात झरते  उपवन में !
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"जिसने भी पहचाना सच को
जवाब देंहटाएंदुनिया में है वही सुभागा ! "
आदरणीया अनिता जी ! प्रणाम !
बहुत ही सुन्दर रचना के लिए पुन: अभिनन्दन !
ध्यान और नाम जप को सभी संतो ने सराहा है
साधू !
स्वागत व आभार तरुण जी !
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार मनोज जी!
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