मंगलवार, फ़रवरी 14

हम एकाकी

हम एकाकी


प्रेम अगर पाया भीतर तो

मिले यह सृष्टि प्रेम लुटाती, 

स्वयं से भी जो न जुड़ पाया

पीड़ा मन की रहे सताती I


भीतर जाकर झोली भर ली

वही लुटाता  यहाँ  आनंद,

जिसके साथ सदा रब रहता

वही बहाता  मदिर  मकरंद !


खुद के साथ रहे जो अविरत

खुद से नाता जोड़ा जिसने,

वही दूसरों से जुड़ सकता

खुद को मीत बनाया जिसने !


खुद का जब तक साथ न पाले

हर कोई एकाकी जग में,

खुद  की भीतर थाह न पाले

हर कोई प्यासा इस मग में !


जग में आते हम एकाकी

 संगी-साथी पल दो पल के,

जग से जाते हम एकाकी

 कौन चला है संग किसी के !


12 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 15 फरवरी 2023 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
    अथ स्वागतम शुभ स्वागतम

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  3. बहुत ही उम्दा व शानदार सृजन एक एक पंक्ति बहुत ही खूबसूरती से पिरोया है आपने !

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  4. निज को समझना, प्रेम करना सबके वश की बात नहीं। प्रेम के सुंदर भाव को समझती उत्तम कृति ।

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    1. वाक़ई यह कृपा भाग्यशाली जनों पर ही बरसती है, आभार!

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  5. भीतर जाकर झोली भर ली

    वही लुटाता यहाँ आनंद,

    जिसके साथ सदा रब रहता

    वही बहाता मदिर मकरंद !
    बस यही सत्य है और यही शिव भी। आत्मा मे परमात्मा जब जान लें ।
    भीतर देखने की अद्भुत दृष्टि पा सके इसी में आनंद है
    परम सत्य का बोध कराती लाजवाब कृति ।

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    1. अति ज्ञानमयी प्रतिक्रिया हेतु साधुवाद सुधा जी!

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  6. खुद के साथ रहे जो अविरत
    खुद से नाता जोड़ा जिसने,
    वही दूसरों से जुड़ सकता
    खुद को मीत बनाया जिसने !
    जीवन सत्य को उजागर करती अत्यंत सुन्दर कृति ।

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  7. जीवन और जगत का सत्य यही है . सत्य को उजागर करती बोधक रचना ..

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