हम एकाकी
प्रेम अगर पाया भीतर तो
मिले यह सृष्टि प्रेम लुटाती,
स्वयं से भी जो न जुड़ पाया
पीड़ा मन की रहे सताती I
भीतर जाकर झोली भर ली
वही लुटाता यहाँ आनंद,
जिसके साथ सदा रब रहता
वही बहाता मदिर मकरंद !
खुद के साथ रहे जो अविरत
खुद से नाता जोड़ा जिसने,
वही दूसरों से जुड़ सकता
खुद को मीत बनाया जिसने !
खुद का जब तक साथ न पाले
हर कोई एकाकी जग में,
खुद की भीतर थाह न पाले
हर कोई प्यासा इस मग में !
जग में आते हम एकाकी
संगी-साथी पल दो पल के,
जग से जाते हम एकाकी
कौन चला है संग किसी के !
सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार संजय जी!
हटाएं
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 15 फरवरी 2023 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अथ स्वागतम शुभ स्वागतम
बहुत बहुत आभार पम्मी जी!
हटाएंबहुत ही उम्दा व शानदार सृजन एक एक पंक्ति बहुत ही खूबसूरती से पिरोया है आपने !
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार मनीषा जी!
हटाएंनिज को समझना, प्रेम करना सबके वश की बात नहीं। प्रेम के सुंदर भाव को समझती उत्तम कृति ।
जवाब देंहटाएंवाक़ई यह कृपा भाग्यशाली जनों पर ही बरसती है, आभार!
हटाएंभीतर जाकर झोली भर ली
जवाब देंहटाएंवही लुटाता यहाँ आनंद,
जिसके साथ सदा रब रहता
वही बहाता मदिर मकरंद !
बस यही सत्य है और यही शिव भी। आत्मा मे परमात्मा जब जान लें ।
भीतर देखने की अद्भुत दृष्टि पा सके इसी में आनंद है
परम सत्य का बोध कराती लाजवाब कृति ।
अति ज्ञानमयी प्रतिक्रिया हेतु साधुवाद सुधा जी!
हटाएं
जवाब देंहटाएंखुद के साथ रहे जो अविरत
खुद से नाता जोड़ा जिसने,
वही दूसरों से जुड़ सकता
खुद को मीत बनाया जिसने !
जीवन सत्य को उजागर करती अत्यंत सुन्दर कृति ।
जीवन और जगत का सत्य यही है . सत्य को उजागर करती बोधक रचना ..
जवाब देंहटाएं