एक मुल्क
जैसे कोई जल
विलग हो जाए
बहते दरिया से
तो सूखने लगता है
वैसे ही झुलस रहा है एक मुल्क
अपने स्रोत से बिछड़ा
खानाबदोश सा कोई परिवार
या माता-पिता से रूठा
नाफ़रमाबरदार बेटा
जो अगर घर से खतो-किताबत
भर शुरू कर दे
भले न लौटे घर
तो हालात सुधरने लगते हैं
प्रेम का रक्त दौड़ने लगता है
उसकी रगों में
जिसकी आँच पिघला देती है
सारी जड़ता
जो कभी दो थे ही नहीं
एक ही थे
वे कैसे पनप सकते हैं अलग होके
जो एक साज़िश का परिणाम था
वह स्नेह की छुअन से ही
हो सकता है पुनर्जीवित
वह मुल्क कौन सा है
यह आप भी जानते हैं !
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26-03-2023) को "चैत्र नवरात्र" (चर्चा अंक 4650) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार शास्त्री जी !
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी!
हटाएंबहुत खूब 👌
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार रूपा जी !
हटाएंविभाजन की त्रासदी के दंश का सच!
जवाब देंहटाएंविभाजन की त्रासदी का दंश आज तक न जाने कितने लोग भुगत रहे हैं, आभार!
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंसुंदर प्रस्तुति " एक मुल्क " ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार दीपक जी!
हटाएंअपनों से अलग होकर, अपनें को साबित करना बड़ा ही दुरूह कार्य है, बंटवारे का दर्द बयां करती उत्तम रचना।
जवाब देंहटाएंसही कह रही हैं आप जिज्ञासा जी! आभार!
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