पलकों में अनुराग भर लिया
आम बौराया, खिल मंजरी
झूल रही मद में गर्वीली,
हवा फागुनी मस्त हुई है
बिखरी मदिर सुवास नशीली !
मोहक, मदमाता सा मौसम
खिले पलाश, सेमल की डाल
धूम मचाती, रंग उड़ाती
आयी होली उड़ता गुलाल !
बही बयार बड़ी बातूनी
बासंती बाग में रसीली,
बजे ढोल, मंजीरे खड़के,
नाच उठी सरसों शर्मीली !
उपवन-उपवन पुष्पों की छवि
ज्यों बारात सजी अलबेली
गुन-गुन नर्तन करे भ्रामरी
उड़े तितलियों सँग रंगीली !
ऊपरवाला खेल रहा है
ऐसे सँग कुदरत के होली
लाल गुलाब, गुलाबी कंचन ,
निकल पड़ी महुआ की टोली !
छँट गए सारे घन सुनी जब
कोयलिया की वन-वन बोली
मिटा द्वैत सब एक हुए हैं
हरेक मुखड़े सजी रंगोली !
डगर-डगर हर गाँव खेत में
निकली है मस्तों की टोली,
पलकों में अनुराग भर लिया
बोलों में ज्यों मिसरी घोली !
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