जीने की अभिलाषा ऐसी
ढगा जा रहा दीवाना मन
अपनी ही क़ैदों में जकड़ा,
उलझा रहा व्यर्थ बंधन में
खुद की ही छाया को पकड़ा !
जीने की अभिलाषा ऐसी
इधर-उधर की माया जोड़ी,
फ़ूलों पत्तों से मढ़वाकर
अहंकार की चादर ओढ़ी !
भ्रम पाले अनेक अंतर में
एक-एक कर टूटा करते,
सुख की उम्मीदें ही रहतीं
दुःख के बादल फूटा करते !
जिसका यह विस्तार पसारा,
वह अनंत जो जान रहा है
लेक़र उससे कुछ उधार पल
यह मानस संसार रहा है !
जानी जान और है दूजा
यह उसके बल पर इतराता,
समझे यह जग को भोगे है
किंतु उसका ग्रास बन जाता !
स्वयं जाल बुनता रिश्तों के
आहत भी अपने बल होता,
रंग, रूप, गंध औ’ स्वाद के
द्वारा नित इससे छल होता !
बोध जगे ना जब तक भीतर
ऐसे ही आना-जाना है,
सुख-दुःख के इस मकड़ जाल में
फँसे हुए बस मुस्काना है !
क्या बात है बेहतरीन अभिव्यक्ति दी।
जवाब देंहटाएंसादर।
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ३ मार्च २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार श्वेता जी !
जवाब देंहटाएंजीने की अभिलाषा
जवाब देंहटाएंव्वाहहहहहहह
सादर आभार
स्वागत व आभार यशोदा जी!
हटाएंजी अनीता जी,जीवन के इस मायाजाल को कोई कहाँ समझ पाया है।सभी त्रस्त हैं और अभ्यस्त भी।इस के बिना दुनिया का नाट्यशास्त्र पूरा जो नहीं हो सकता इस वैरागी भाव की रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं।होली मुबारक हो।सपरिवार सानंद रहें यही कामना है ❤❤💖💖🎉🎉🎁🎁🌹🌹🙏
जवाब देंहटाएंआपको भी होली मुबारक!
हटाएंजीने की अभिलाषा ऐसी
जवाब देंहटाएंइधर-उधर की माया जोड़ी,
फ़ूलों पत्तों से मढ़वाकर
अहंकार की चादर ओढ़ी !
बस इसी भ्रम में जीवन गुजरता है सत्य से परे ।
जीवन बोध कराता लाजवाब सृजन
स्वागत व आभार सुधा जी !
हटाएंआदरणीया मैम, सादर प्रणाम। आपकी यह बहुत ही सुंदर अध्यात्म भाव सहेजी हुई रचना श्रीमद भागवत महापुराण के श्लोक "ब्रम्ह सत्यम जगत मिथ्या" का स्मरण करा देती है। बहुत ही सुंदर रचना, मानव भगवान नारायण की योगमाया के अधीन है। हार्दिक आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको पुनः प्रणाम।
जवाब देंहटाएंमानव चाहे तो जीते जी मुक्ति का अहसास कर सकता है, लेकिन उसे इस माया-मोह में ही आनंद आता है शायद
हटाएंबहुत ही सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी!
हटाएंबोध जगे ना जब तक मन में ... स्वप्न ही यथार्थ लगता है. यही भ्रम है. शब्दातीत विचार. आपके आध्यात्मिक विचार और जीवन जगत की सच्चाई का अनुभव समान्य से बहुत ऊपर है.
जवाब देंहटाएंसारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभार, हज़ारों- लाखों की तरह हम सबने ही जीवन जगत की वास्तविकता का अनुभव किया है, बस आवश्यकता है उस अनुभव को जीवन में ढालने की
हटाएंआपकी लिखी रचना सोमवार 6 मार्च 2023 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
बहुत बहुत आभार संगीता जी!
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