सत्य
सत्य है
अखंड, एकरस
जानने वाला
जान रहा प्रतिपल
नहीं है भूत या भविष्य
उसके लिए
वहाँ कोई भेद नहीं
न दिशाओं का
न गुणों का
भावातीत, कालातीत व देशातीत
वह बस अपने आप में स्थित है
वह एक ही आधार है
पर वह सदा अबदल है
अभेद्य, अच्छेद्य
उसमें सब प्रतीति होती है
पर है कुछ नहीं
दिखता है यह द्वन्द्वों का जगत
यहाँ कुछ भी नहीं टिकता
जबकि उस एक का
कुछ भी नहीं घटता !
बहुत सुंदर सत्य सदैव सनातन शाश्वत एक है । उसी सत्य से सबकुछ है ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंहाँ सच में वही तो एकमात्र शाश्वत सत्य है।
जवाब देंहटाएंआपकी आध्यात्मिक रचनाएँ विचारों को नया दृष्टिकोण प्रदान करती हैं।
सस्नेह
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १५ जुलाई २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार श्वेता जी!
हटाएंभावातीत, कालातीत व देशातीत
जवाब देंहटाएंवह बस अपने आप में स्थित है
वह एक ही आधार है
सत्य को बहुत सुन्दरता से परिभाषित किया है अनीता जी ! गहन चिंतन परक सृजन । सादर नमस्कार !
स्वागत व आभार मीना जी !
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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