शुक्रवार, अप्रैल 26

पंछी इक दिन उड़ जाएगा

पंछी इक दिन उड़ जाएगा 


जरा, रोग की छाया डसती 

मृत्यु, मुक्ति की आस बँधाये, 

पंच इंद्रियाँ शिथिल हुई जब  

जीवन में रस, स्वाद न आये !


कुछ करने की चाह न जागे  

फिर भी आशा देह चलाती, 

जीवन की संध्या बेला में  

पीड़ा उर में रहे सताती !


धन का मोह, मोह पदार्थ का 

अंतिम क्षण तक  रहता जकड़े,

ख़ुद की महिमा समझ न पाया 

मानव मरते दम तक अपने !


 ज्वाला क्रोध जलाया करती 

पहन मुखौटा जग से मिलता, 

कभी-कभी ही सहज प्रेम से 

अंतर कमल जीव का खिलता !


या निर्मल प्रेम संग मन में

काँटा भीतर चुभता रहता, 

भय का एक आवरण मन को 

भ्रमित करे, सुख हरता रहता !


सौ-सौ कष्ट सहे जाता है 

किंतु मोह अतीव जीवन से, 

पंछी इक दिन उड़ जाएगा 

बंधा हुआ जीव तन-मन से ! 


मोह मिटेगा, शांति मिलेगी, 

तोड़ा जब बंधन माया का, 

झुकी कमर, बलहीन हुआ तन 

पुनर्जन्म होगा काया का !


ख़ुशी-ख़ुशी जग विदा करेगा 

पाथेय प्रेम संग बांध दे, 

पथिक चला जो नयी राह पर 

शुभता से उसका मन भर दे !



8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 28 अप्रैल 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! <

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  2. यथार्थ सत्य को दर्शाती बहुत ही सुन्दर कविता।

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