नयन स्वयं को देखते न
हम हमीं को ढूँढते हैं
पूछते फिरते कहाँ हो ?
हम हमीं को ढूँढते हैं
पूछता ‘मैं’ ‘तुम’ कहाँ हो ?
खेल कैसा है रचाया
अश्रु हर क्योंकर बहाया,
नयन स्वयं को देखते न
रहे उनमें जग समाया !
अस्त होता कहाँ दिनकर
डोलती है भू निरंतर,
देह-मन को करे जगमग
आत्मा सदा दीप बन कर !
प्रश्नवाचक जो बना है
पूछता जो प्रश्न सारे,
भावना से दूर होगा
दर्द जो अब भरे आहें !
जो नचाती, घेरती भी
एक छाया ही मनस की,
दूर ले जा निकट लाती
लालसा जीवन-मरण की !
‘तू’ छिपा मुझी के भीतर
‘मैं’ मिले ‘तू’ झलक जाये
एक पल में हो सवेरा
भ्रम मिटाकर रात जाये !
नयन स्वयं को देखते न हम हमीं को ढूँढते हैं
जवाब देंहटाएंव्वाहहहहहह
सादर वंदन
स्वागत व आभार यशोदा जी !
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ज्योति जी !
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 25 अप्रैल 2024 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
बहुत बहुत आभार रवींद्र जी !
हटाएं‘तू’ छिपा मुझी के भीतर
जवाब देंहटाएं‘मैं’ मिले ‘तू’ झलक जाये
एक पल में हो सवेरा
भ्रम मिटाकर रात जाये !
बहुत सुन्दर भावपूर्ण सृजन अनीता जी !
मैं outer ring road के पास Bellandur में रहती हूँ ।कनकपुरा रोड का नाम सुना हुआ है ।अवश्य मिलेंगे अनीता जी ।आप कभी इधर आएं तो ज़रूर सूचना दें यदि मुझे अवसर मिला तो मैं मिलतीं हूँ ।आपसे मिल कर अत्यंत ख़ुशी होगी ।
हटाएंजी, किसी न किसी दिन अवश्य मिलेंगे,
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार आलोक जी !
हटाएंवाह! बहुत सुंदर...
जवाब देंहटाएं‘तू’ छिपा मुझी के भीतर
‘मैं’ मिले ‘तू’ झलक जाये
एक पल में हो सवेरा
भ्रम मिटाकर रात जाये !
....जीवन का पूरा दर्शन समय है इन पंक्तियों में ..... बहुत सुंदर 👌👌👌
स्वागत व आभार शरद जी, आपका लेखन सदा प्रभावित करता है, आप इतना कुछ कैसे लिख लेती हैं, कभी-कभी आश्चर्य भी होता है
हटाएंसराहनीय रचना
जवाब देंहटाएंआपका कहना शत-प्रतिशत सही है, स्वागत व आभार नूपुरं जी !
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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