सत्य
पाया नहीं जा सकता इसे
पहचानना है
महसूस भर करना है
जो अस्तित्व में उपस्थित है
इसे उजागर भर होना है
नया नहीं है सत्य
अनादि अस्तित्व है
जागरूक होना है जिसके प्रति
जो जानता है जितना अधिक
उतना ही ढका है अज्ञान से
ज्ञान बन जाता है अज्ञान
जब ढक जाता है मन
उसकी स्मृति के काले बादलों से
सोचने से नहीं मिलता यह
न ही स्थानांतरित हो सकता है
सदैव प्रतीक्षारत है
वृक्ष, पशु, यहाँ तक निर्जीव भी
ओतप्रोत हैं इससे
चट्टानों में जो सोया है
थोड़ा सा जगा है पेड़ों में
पशुओं में कुछ अधिक
और खिल गया है पूरा मानव में
कोई बुद्ध सत्य की याद दिलाता है
जो गहराई तक उतर जाती है
आंदोलित हो जाता है अस्तित्व
और एक दिन खिल जाता है
मन का कमल
या कहें सत्य कमल !
सहमत कमल आज का सत्य है :)
जवाब देंहटाएंयदि उसे सत्य मान ही लिया है आपने तो क्यों न दिल से स्वीकार भी करें
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" मंगलवार 21 मई 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार यशोदा जी !
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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