मंगलवार, जनवरी 21

सारे माला के मनके हैं

सारे माला के मनके हैं


सच के सपने देखा करता 

माया में रमता निशदिन मन, 

जाने किसने बंधन डाले 

मुक्त सदा ही मुरली की धुन ! 


अग्निशिखा सा दिप-दिप करता 

भीतर कोई यज्ञ चल रहा,

दैव एक लिखता जाता है 

लेख कर्म के कौन पढ़ रहा !


शून्य वही जो ब्रह्म कहाये 

एक अनूप  लोक गढ़ता है, 

ख़ुद ही ख़ुद को रहे जानता 

चकित हुआ मन जब तकता है !


है अनंत, अनंत का सब कुछ 

जड़-चेतन दोनों उसके हैं, 

वही बनाये वही चलाये 

सारे माला के मनके हैं !


4 टिप्‍पणियां:


  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 22 जनवरी 2025 को साझा की गयी है....... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।

    जवाब देंहटाएं