शस्य श्यामला मातरम्
लबालब भरे हैं
पोखर अमृत जल से
हरियाली का उतरा
समुन्दर जैसे
दूर क्षितिज तक
फैले गहरे हरे वन
देख-देख ठंडक उतर
जाती भीतर
कदली वन.. बांस
के झुरमुट
धान और अरहर के
खेत
कीचड़ सने पाँव कई
गाते रहे होंगे गीत
सुंदर अरहर की
पूलियां
मानो किसी
चित्रकार की आकृतियाँ
नील गगन पर श्वेत
मेघ की पूनियां
सुपारी के नारंगी
फूल महकते
पोखर में झाँकता
गगन
वृक्षों-पादपों
के मोहक प्रतिबिम्ब
मानो
बालक-बालिकाएं पंक्तिबद्ध