शुक्रवार, मई 26

शस्य श्यामला मातरम्


शस्य श्यामला मातरम्

लबालब भरे हैं पोखर अमृत जल से
हरियाली का उतरा समुन्दर जैसे
दूर क्षितिज तक फैले गहरे हरे वन 
देख-देख ठंडक उतर जाती भीतर
कदली वन.. बांस के झुरमुट
धान और अरहर के खेत
कीचड़ सने पाँव कई गाते रहे होंगे गीत
सुंदर अरहर की पूलियां
मानो किसी चित्रकार की आकृतियाँ
नील गगन पर श्वेत मेघ की पूनियां
सुपारी के नारंगी फूल महकते 
पोखर में झाँकता गगन
वृक्षों-पादपों के मोहक प्रतिबिम्ब
मानो बालक-बालिकाएं पंक्तिबद्ध

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति नहीं रहे सुपरकॉप केपीएस गिल और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। एक बार आकर हमारा मान जरूर बढ़ाएँ। सादर ... अभिनन्दन।।

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  2. बहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !

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  3. सुन्दर चित्र खींचा है आपने

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    1. स्वागत व आभार ओंकार जी..प्रकृति कितनी मनोहारी है..

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  4. प्रतिभाजी, लेकिन क्या..आप अपने वाक्य को पूर्ण करें तो स्पष्ट होगा..जीवन प्रकृति में अपने सुन्दरतम रूप में विद्यमान है..

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