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बुधवार, अक्टूबर 7

हम तो घर में रहते हैं


हम तो घर में रहते हैं

जग की बहुत देख ली हलचल
कहीं न पहुँचे कहते हैं,
पाया है विश्राम कहे मन
हम तो घर में रहते हैं !

जिसके पीछे दौड़ रहा था
छाया ही थी एक छलावा,
घर जाकर यह राज खुला
माया है जग एक भुलावा !

कदम थमे तब दरस हुआ
प्रीत के अश्रु बहते हैं,
रूप के पीछे छिपा अरूप
उससे मिलकर रहते हैं !