अर्थवान हों शब्द हमारे
शब्दों का संसार सजाया
मन जिसमें डूबा उतराया,
पहुँचा कहीं न लोटपोट कर
वैसे का वैसा घर आया !
शब्दों की लोरी बन सकती
तंद्रा भीतर जो भर देती,
नहीं जागरण संभव उससे
नींद को वह गहरा कर देती !
शब्दों को तलवार बनाया
इनको ही तो ढाल बनाया,
मोती कुछ लेकर आयेंगे
शब्दों का इक जाल बनाया !
शब्द अकेले क्या कर सकते
यदि न अर्थ उनमें भर सकते,
अर्थ बिना न कोई कीमत
शब्द नहीं पीड़ा हर सकते !
अर्थ वही जो अनुभव देता
प्रामाणिक जीवन कर देता,
परिवर्तन कर अणु-अणु का
भावमय अंतर कर देता !