यह विश्वास रहे अंतर में
शायद एक परीक्षा है यह
जो भी होगा लायक इसके,
उसको ही तो देनी होगी
शायद एक समीक्षा है यह !
जीवन के सुख-दुखका पलड़ा
सदा डोलता थिर कब रहता,
क्या समता को प्राप्त हुआ है
शेष रही अपेक्षा है यह !
तन दुर्बल हो मन भी अस्थिर
किन्तु साक्षी भीतर बैठा,
शायद यही पूछने आया
क्या उसकी उपेक्षा है यह !
जिसने खुद को योग्य बनाया
प्रकृति ठोंक-पीट कर जांचे,
इसी बहाने और भी शक्ति
भीतर भरे सदिच्छा है यह !
यह विश्वास रहे अंतर में
उसका हाथ सदा है सिर पर,
पल-पल की है खबर हमारी
शायद उसकी चिंता है यह !
हुए सफल निकल आएंगे
हृदय को दृढ़तर पाएंगे,
चाहे कड़ी परीक्षा हो यह
कृपालु की दीक्षा है यह !