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गुरुवार, अप्रैल 15

यह विश्वास रहे अंतर में

यह विश्वास रहे अंतर में


शायद एक परीक्षा है यह

जो भी होगा लायक इसके, 

उसको ही तो देनी होगी 

शायद एक समीक्षा है यह ! 


जीवन के सुख-दुखका पलड़ा 

सदा डोलता थिर कब रहता, 

क्या समता को प्राप्त हुआ है

शेष रही अपेक्षा है यह !


तन दुर्बल हो मन भी अस्थिर 

किन्तु साक्षी भीतर बैठा, 

शायद यही पूछने आया 

क्या उसकी उपेक्षा है यह !


जिसने खुद को योग्य बनाया 

प्रकृति ठोंक-पीट कर जांचे,  

इसी बहाने और भी शक्ति

भीतर भरे सदिच्छा है यह !


यह विश्वास रहे अंतर में 

उसका हाथ सदा है सिर पर, 

पल-पल की है खबर हमारी 

शायद उसकी चिंता है यह ! 


हुए सफल निकल आएंगे 

हृदय को दृढ़तर पाएंगे, 

चाहे कड़ी परीक्षा हो यह 

कृपालु की दीक्षा है यह !