जीवन बँटता ही जाता है
झोली भर-भर कर ले जाओ
चुकता कब उसका भंडारा,
चमत्कार यह देख न पाये
जग नूतन चाह जगाता है !
जीवन बँटता ही जाता है !
कण-कण में विश्वास भरा है
अणु-अणु में गति भर दी किसने,
सुमधुर, सुकोम, सरस स्वर में
कोई भीतर से गाता है !
जीवन बँटता ही जाता है !
चट्टानों के भीतर जीवन
अग्नि गुफाओं में भी सर्जन
जल, अनिल, अनल, नभ को धारे
यह धरती माँ सा भाता है !
जीवन बंटता ही जाता है !
स्थूल, सूक्ष्म, कारण इन तीनों
देहों के पार वही सच है,
मन उस समता में जागे नित
हर द्वन्द्व जहां गिर जाता है !
जीवन बंटता ही जाता है !
हर रूप वही आकार वही
भावना, विचार, हर ध्वनि वही,
पादप, पशु, पंछी, बादल में
वह पावन ही दिख जाता है !
जीवन बंटता ही जाता है !
है शिव से न शक्ति विलग कभी
मन-प्राण समोहित से रहते,
श्वासों का जो आधार बना
वह गीतों में गुंजाता है !