अस्तित्त्व और हम
अस्तित्त्व खड़े करता है
प्रश्न
खोजने होते हैं जिनके उत्तर
हमें
आगे बढ़ने के लिए..
जरूरी है परीक्षाओं से
गुजरना
अनसीखा मन लौटा दिया जाता
है बार-बार
कच्चे घड़े की तरह अग्नि में
!
जीवन कदम-कदम एक मौका है
खड़े रहें इस पार.. डूब जाएँ
मंझधार में..
या उतर जाएँ उस पार !
हर दिन एक नई चुनौती लेकर
आए
इसका भी प्रबंध हमें ही करना
होगा...
अथवा
छोड़ ही दें सब कुछ
अस्तित्त्व पर..
जब तक टूट नहीं जाता हर रक्षा
कवच
परम रक्षक छिपा ही रहता है
जब तक बना रहता है ‘मैं’
सत्य ढका ही रहता है !
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार अनुराधा जी !
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जगदीशचन्द्र माथुर और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !
हटाएंसार्थक रचना ...
जवाब देंहटाएंसच है क़दम क़दम पर खोजना होता है
ख़ुद को अंतस को ... तभी इस यात्रा का पूर्ण आनंद है ...
बहुत सुंदर रचना ...
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी !
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