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रविवार, अगस्त 27

किसका रस्ता अब जोहे मन



किसका रस्ता अब जोहे मन

तू गाता है स्वर भी तेरे
लिखवाता नित गान अनूठे,
तू ही गति है जड़ काया में
सहज प्रेरणा, उर में पैठे !

किसका रस्ता अब जोहे मन
पाहुन घर में ही रहता है,
हर अभाव को पूर गया जो
निर्झर उर में वह बहता है !

तू पूर्ण हमें पूर्ण कर रहा
नहीं अज्ञता तुझको भाती,
हर लेता हर कंटक पथ का
स्मृति अंतर की व्यथा चुराती !

तिल भर भी रिक्तता न छोड़े
अजर उजाला बन कर छाया,
सारे खन्दक, खाई पाटे
समतल उर को कर हर्षाया !

इक कणिका भी अंधकार की
तुझ ज्योतिर्मय को न सुहाती,
एक किरण भी हिरण्यमय की
प्रतिपल यही जताने आती !

शनिवार, अगस्त 2

हर लेता हर कंटक पथ का


हर लेता हर कंटक पथ का


तू गाता है स्वर भी तेरे
लिखवाता नित गान अनूठे,
तू ही गति है जड़ काया में
 बन प्रेरणा उर में पैठे !

तू पूर्ण ! हमें पूर्ण कर रहा
नहीं अपूर्णता तुझको भाती,
हर लेता हर कंटक पथ का
हरि बन सारी व्यथा चुरा ली !

किसका रस्ता अब जोहे मन
पाहुन घर में ही रहता है,
हर अभाव को पूर गया जो
निर्झर उर में बहता है !

तिल भर भी रिक्तता न छोड़े
वही उजाला बन कर छाया,
सारे खन्दक, खाई पाटे
समतल उर को कर हर्षाया !

इक कणिका भी अंधकार की
उस ज्योतिर्मय को न भाती,
एक किरण भी उस पावन की
प्रतिपल यही जताने आती !