किसका
रस्ता अब जोहे मन
तू गाता
है स्वर भी तेरे
लिखवाता नित गान अनूठे,
तू ही गति है जड़ काया में
सहज प्रेरणा, उर में पैठे !
किसका रस्ता अब जोहे मन
पाहुन घर में ही रहता है,
हर अभाव को पूर गया जो
निर्झर उर में वह बहता है !
तू पूर्ण
हमें पूर्ण कर रहा
नहीं
अज्ञता तुझको भाती,
हर लेता
हर कंटक पथ का
स्मृति
अंतर की व्यथा चुराती !
तिल भर
भी रिक्तता न छोड़े
अजर उजाला बन कर छाया,
सारे खन्दक, खाई पाटे
समतल उर को कर हर्षाया !
इक कणिका
भी अंधकार की
तुझ
ज्योतिर्मय को न सुहाती,
एक किरण
भी हिरण्यमय की
प्रतिपल
यही जताने आती !
जीवन के समुचित लक्ष्यों पर स्थिर रहने की प्रेरणा देनेवाला सुन्दर गीत। आपके गीत कितने अच्छे हैं, इन्हें पढ़कर बहुत आनंद आता है।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रतिक्रिया के लिए आभार विकेश जी..
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ऋषिकेश मुखर्जी और मुकेश - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !
हटाएंप्रेरणा देता हुआ ... सुन्दर गीत ... तू ही स्वर , तू ही गति है ... उसकी आत्मा न हो तो सब कुछ जड़ ही तो है ...
जवाब देंहटाएंकिसका रस्ता अब जोहे मन
जवाब देंहटाएंपाहुन घर में ही रहता है,
हर अभाव को पूर गया जो
निर्झर उर में वह बहता है !
....कितनी गहन बात कितने सहज और सुन्दर शब्दों में...बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति..
किसका रस्ता अब जोहे मन
जवाब देंहटाएंपाहुन घर में ही रहता है
..इस भाव का ज्ञान इतनी आसानी से हो नहीं पाता. और अर्थ जानते है जीवन सरल लगने लगता है. बहुत अछे कविता.
सभी सुधीजनों का आभार !
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