बांध लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
बांध लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

सोमवार, मई 27

इक दिया, कुछ तेल, बाती


इक दिया, कुछ तेल, बाती



खो गया है कोई घर में चलो उसको ढूँढ़ते हैं
बह रहा जो मन कहीं भी बांध कोई बाँधते हैं

आँधियों की ऊर्जा को पाल में कैसे समेटें  
उन हवाओं से ही जाकर राज इसका पूछते हैं

इक दिया, कुछ तेल, बाती जब तलक ये पास हैं
उन अंधेरों से डरें क्यों खुद जो रस्ता खोजते हैं

हँस दे पल में पल में रोए मन शिशु से कम नहीं
दूर हट के उस नादां की हरकतें हम देखते हैं

कुछ न खुद के पास लेकिन ऐंठ में अव्वल है जो
उस अकड़ को शान से कपड़े बदलते देखते हैं