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बुधवार, नवंबर 15

अभी समय है नजर मिलाएं


 अभी समय है नजर मिलाएं


नया वर्ष आने से पहले
नूतन मन का निर्माण करें,
नया जोश, नव बोध भरे उर
नये युग का आह्वान करें !

अभी समय है नजर मिलाएं
स्वयं, स्वयं को जाँचें परखे,
झाड़ सिलवटों को आंचल से
नयी दृष्टि से जग को निरखे !

रंजिश नहीं हो जिस दृष्टि में
नहीं भेद कुछ भले-बुरे का,
निर्मल आज नजर जो आता
कल तक वह धूमिल हो जाता !

पल-पल बदल रही है जगती
नश्वरता को कभी न भूलें,
मन उपवन हो रिक्त भूत से
भावी हित मन माटी जोतें !

कर डालीं थी कल जो भूलें
उनकी जड़ें मिटा दें उर से,
नव पौध प्रज्ञा की उगायें
नव चिंतन से सिंचन कर के !

बने-बनाये राजपथ छोड़
नूतन राहों का सृजन करे,
नया दौर बस आने को है
मन शुभता का ही वरण करे !

रविवार, अक्टूबर 7

नहीं, यह मंजिल नहीं है



नहीं, यह मंजिल नहीं है  

नहीं, यहाँ राजपथ नहीं हैं
पगडंडियाँ हैं, जो खो गयी हैं कंटीले झाड़ों में
स्वयं निर्मित मार्ग पर ही बढ़ सकेंगे
नहीं खोजना है चिन्ह कोई
छोड़ गया हो जो, कोई राहगीर
अनजाने मार्गों से प्रवेश करेंगे..

नहीं, कंटक दुखद नहीं हैं
यदि बच के निकल सकेंगे
घाटियों से गुजर कर ही पाएंगे शिखर..

नहीं, यह मंजिल नहीं है
द्वार है केवल, जिससे होकर गुजरना है
छोड़ देना होगा ताम-झाम बाहर ही
द्वार संकरा है यह
समय भी छूट जायेगा बाहर
क्षुद्र सब गिर जायेगा
धारा के साथ जब बहेंगे
पंख बिना ही तब उडेंगे..

नहीं, यहाँ पाना नहीं है कुछ
अनावरण करना है उसे जो है
व्यापार नहीं करंगे जो प्रेम में
वही उसकी गहराई में उतर सकेंगे..