रविवार, अक्तूबर 7

नहीं, यह मंजिल नहीं है



नहीं, यह मंजिल नहीं है  

नहीं, यहाँ राजपथ नहीं हैं
पगडंडियाँ हैं, जो खो गयी हैं कंटीले झाड़ों में
स्वयं निर्मित मार्ग पर ही बढ़ सकेंगे
नहीं खोजना है चिन्ह कोई
छोड़ गया हो जो, कोई राहगीर
अनजाने मार्गों से प्रवेश करेंगे..

नहीं, कंटक दुखद नहीं हैं
यदि बच के निकल सकेंगे
घाटियों से गुजर कर ही पाएंगे शिखर..

नहीं, यह मंजिल नहीं है
द्वार है केवल, जिससे होकर गुजरना है
छोड़ देना होगा ताम-झाम बाहर ही
द्वार संकरा है यह
समय भी छूट जायेगा बाहर
क्षुद्र सब गिर जायेगा
धारा के साथ जब बहेंगे
पंख बिना ही तब उडेंगे..

नहीं, यहाँ पाना नहीं है कुछ
अनावरण करना है उसे जो है
व्यापार नहीं करंगे जो प्रेम में
वही उसकी गहराई में उतर सकेंगे..

19 टिप्‍पणियां:

  1. नहीं, यहाँ पाना नहीं है कुछ
    अनावरण करना है उसे जो है
    व्यापार नहीं करंगे जो प्रेम में
    वही उसकी गहराई में उतर सकेंगे

    सत्य वचन

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  2. नहीं, यहाँ पाना नहीं है कुछ
    अनावरण करना है उसे जो है
    व्यापार नहीं करंगे जो प्रेम में
    वही उसकी गहराई में उतर सकेंगे..

    अद्भुत रचना है अनीता जी ...ज्ञान का और प्रेम का मार्ग दिखलाती हुई ....!!
    बहुत आभार ...!!

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  3. समय भी छूट जायेगा बाहर
    क्षुद्र सब गिर जायेगा
    धारा के साथ जब बहेंगे
    पंख बिना ही तब उडेंगे.. बहुत सुन्दर...

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  4. "व्यापार नहीं करंगे जो प्रेम में
    वही उसकी गहराई में उतर सकेंगे.." सही कहा |
    हर बार की तरह एक और लाजवाब रचना |

    सादर |

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  5. गाफिल जी अति व्यस्त हैं, हमको गए बताय ।

    उत्तम रचना देख के, चर्चा मंच ले आय ।

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  6. जहां प्रेम कि गहराई मिलती है फिर कुछ भी तो नहीं दीखता है. अति सुन्दर रचना.

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    उत्तर
    1. अमृता जी, जहाँ कुछ भी नहीं है वहीं से सब कुछ आया है..

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  7. वन्दना जी, अनुपमा जी, माहेश्वरी जी, मन्टू जी, धीरेन्द्र जी, अनामिका जी,सुषमा जी अप सभी का स्वागत व् आभार !

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  8. नहीं ये मंजिल नहीं है.....बहुत ही सुन्दर कहीं भी किसी पथ पर रुकना नहीं है........वाह.......अनीता जी जज़्बात कि पिछली ३ पोस्ट आपकी टिप्पणी के इंतज़ार में हैं :-)

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  9. सुन्दर सार्थक चिंतन प्रस्तुत करती अच्छी प्रस्तुति.
    प्रेम में व्यापार प्रेम में जहर घोलता है.
    आभार.
    समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर आईएगा,अनीता जी.

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  10. ऐसा ही होता है प्रेम में, काम मे, पूजा में समर्पण की भावना आवश्यक । सुंदर अलग सी रचना ।

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  11. बहुत गहन मंथन ,भावों का नवनीत हर छंद को समृद्ध कर रहा है -साधु !

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  12. आशा जी,राकेश जी, वन्दना जी, माहेश्वरी जी, मंटू जी, अनुपमा जी, अनामिका जी, सुषमा जी, रविकर जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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