फागुन झोली भरे आ रहा
सुनो ! गान पंछी
मिल गाते
मदिर पवन डोला
करती है,
फागुन झोली भरे आ
रहा
कुदरत खिल इंगित
करती है !
सुर्ख पलाश
गुलाबी कंचन
बौराये से आम्र
कुञ्ज हैं,
कलरव निशदिन
गूँजा करता
फूलों पर तितली
के दल हैं !
टूटा मौन शिशिर
का जैसे
एक रागिनी सी हर
उर में,
मदमाता मौसम छाया
है
सुरभि उड़ी सी भू
अम्बर में !
नव ऊर्जित भू
कण-कण दमके
हलचल, कम्पन हुआ गगन में,
पवन चले फगुनाई
सस्वर
मधुरनाद गुंजित
तन-मन में !
भीनी-भीनी गंध
नशीली
नासापुट में महक
भर रही,
रंगबिरंगे
कुसुमों से नित
वसुंधरा नित राग
रच रही !