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बुधवार, फ़रवरी 21

फागुन झोली भरे आ रहा




फागुन झोली भरे आ रहा


सुनो ! गान पंछी मिल गाते
मदिर पवन डोला करती है,
फागुन झोली भरे आ रहा
कुदरत खिल इंगित करती है !

सुर्ख पलाश गुलाबी कंचन
बौराये से आम्र कुञ्ज हैं,
कलरव निशदिन गूँजा करता
फूलों पर तितली के दल हैं !

टूटा मौन शिशिर का जैसे
एक रागिनी सी हर उर में,
मदमाता मौसम छाया है
सुरभि उड़ी सी भू अम्बर में !

नव ऊर्जित भू कण-कण दमके
हलचल, कम्पन हुआ गगन में,
पवन चले फगुनाई सस्वर
मधुरनाद गुंजित तन-मन में !

भीनी-भीनी गंध नशीली
नासापुट में महक भर रही,
रंगबिरंगे कुसुमों से नित
वसुंधरा नित राग रच रही !


गुरुवार, फ़रवरी 8

शून्य और पूर्ण



शून्य और पूर्ण


 तज देता है पात शिशिर में पेड़
ठूंठ सा खड़ा होने की ताकत रखता है
 अर्पित करे निज आहुति
सृष्टि महायज्ञ में
नुकीली चुभन शीत की सहता है
भर जाता कोमल कोंपलों औ’ नव पल्लवों से
 बसंत में वही खिल उठता है
त्याग देता घरबार सन्यासी
स्वागत करने को हर द्वार आतुर होता है
पतझड़ के बाद ही आता है बसंत
समर्पण के बाद ही मिलता है अनंत
शून्य हो सका जो वह पूर्ण बनता है
हीरा ही वर्षों माटी में सनता है !


शनिवार, मार्च 1

वर्षा को भी मची है जल्दी

वर्षा को भी मची है जल्दी


टिप-टिप बूंदें दूर गगन से
ले आतीं संदेश प्रीत के,
धरा हुलसती हरियाली पा
खिल हँसती ज्यों बोल गीत के !

शिशिर अभी तो गया नहीं है
 रुत वसंत आने को है,
मेघों का क्या काम अभी से
 फागुन माह चढ़ा भर है !

वर्षा को भी मची है जल्दी
उधर फूल खिलने को आतुर,
मोर शीत में खड़े कांपते
 अभी नहीं जगे हैं दादुर !

मानव का ही आमन्त्रण है
उथल-पथल जो मची गगन में,
बेमौसम ही शाक उगाता
बिन मौसम फल-फूल चमन में !