प्रेम स्वप्न बन कर पलता है
एक बार फिर देखें मुड़कर
कितनी राह चले आये हम,
कब थामा था हाथ हाथ में
कितनी चाह भरे भीतर मन !
छोटा सा संसार बसाया
कितने ही परिवर्तन देखे,
कितने सफर, मंजिलें कितनी
कितने ही अभिनन्दन देखे !
बरसों का है साथ अनोखा
लगे आज भी नया-नया सा,
है अनंत जीवन यह अद्भुत
राज न कोई जाने जिसका !
अभी सफर यह शुरू हुआ है
अब तलक भूमिका ही बाँधी ,
जीवन नित नव द्वार खोलता
व्यर्थ यहाँ सीमा बाँधी थी !
पाया ही पाया है अब तक
प्रीत लुटाने की रुत आयी,
जगी ऊर्जा सुप्त पड़ी, कुछ
कर दिखलाने की रुत आयी !
हर पल कोई साया बनकर
सदा साथ ही जो चलता है,
प्रेम हमारा अनुपम रक्षक
प्रेम स्वप्न बन कर पलता है !
उन सभी को समर्पित जिनके विवाह की वर्षगाँठ इस वर्ष है