प्रेम स्वप्न बन कर पलता है
एक बार फिर देखें मुड़कर
कितनी राह चले आये हम,
कब थामा था हाथ हाथ में
कितनी चाह भरे भीतर मन !
छोटा सा संसार बसाया
कितने ही परिवर्तन देखे,
कितने सफर, मंजिलें कितनी
कितने ही अभिनन्दन देखे !
बरसों का है साथ अनोखा
लगे आज भी नया-नया सा,
है अनंत जीवन यह अद्भुत
राज न कोई जाने जिसका !
अभी सफर यह शुरू हुआ है
अब तलक भूमिका ही बाँधी ,
जीवन नित नव द्वार खोलता
व्यर्थ यहाँ सीमा बाँधी थी !
पाया ही पाया है अब तक
प्रीत लुटाने की रुत आयी,
जगी ऊर्जा सुप्त पड़ी, कुछ
कर दिखलाने की रुत आयी !
हर पल कोई साया बनकर
सदा साथ ही जो चलता है,
प्रेम हमारा अनुपम रक्षक
प्रेम स्वप्न बन कर पलता है !
उन सभी को समर्पित जिनके विवाह की वर्षगाँठ इस वर्ष है
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 08 जनवरी 2023 को साझा की गयी है
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत आभार यशोदा जी!
हटाएंप्रेमसिक्त बेहतरीन रचना । वैसे जो विवाहित हैं , उनकी वैवाहिक वर्षगांठ तो हर साल आएगी । नहीं क्या ?
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार संगीता जी, हमारी पीढ़ी के लिए तो यह शत-प्रतिशत सही है पर आजकल समाज में जो चलन है उसे देखते हुए....
हटाएंवाह बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण प्रेम के अनुपम रूप को चित्रित करती है आपकी यह रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार अभिलाषा जी!
हटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार पम्मी जी!
हटाएंलाजवाब सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार मनोज जी!
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी!
हटाएंप्रेम ही साकार है, प्रेम निर्विकार है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना।
स्वागत व आभार रूपा जी!
हटाएंपाया ही पाया है अब तक
जवाब देंहटाएंप्रीत लुटाने की रुत आयी,
जगी ऊर्जा सुप्त पड़ी, कुछ
कर दिखलाने की रुत आयी !
वाह!!!!
हमेशा की तरह लाजवाब...
सभी विवाहितों को समर्पित भी ...
🙏🙏
स्वागत व आभार सुधा जी!
हटाएं