शनिवार, जनवरी 7

प्रेम स्वप्न बन कर पलता है



प्रेम स्वप्न बन कर पलता है

एक बार फिर देखें मुड़कर

कितनी राह चले आये हम,

कब थामा था हाथ हाथ में 

कितनी चाह भरे भीतर मन !


छोटा सा संसार  बसाया

कितने ही परिवर्तन देखे,

कितने सफर, मंजिलें कितनी

कितने ही अभिनन्दन देखे !


बरसों का है साथ अनोखा

लगे आज भी नया-नया सा,

है अनंत जीवन यह अद्भुत 

राज न कोई जाने जिसका !


अभी सफर यह शुरू हुआ है 

अब तलक भूमिका ही बाँधी ,

जीवन नित नव द्वार खोलता

व्यर्थ यहाँ सीमा बाँधी थी !


पाया ही पाया है अब तक 

प्रीत लुटाने की रुत आयी,

जगी ऊर्जा सुप्त पड़ी, कुछ 

कर दिखलाने की रुत आयी !


हर पल कोई साया बनकर 

सदा साथ ही जो चलता है,

प्रेम हमारा अनुपम रक्षक

प्रेम स्वप्न बन कर पलता है !


उन सभी को समर्पित जिनके विवाह की वर्षगाँठ इस वर्ष है


17 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 08 जनवरी 2023 को साझा की गयी है
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. प्रेमसिक्त बेहतरीन रचना । वैसे जो विवाहित हैं , उनकी वैवाहिक वर्षगांठ तो हर साल आएगी । नहीं क्या ?

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    1. स्वागत व आभार संगीता जी, हमारी पीढ़ी के लिए तो यह शत-प्रतिशत सही है पर आजकल समाज में जो चलन है उसे देखते हुए....

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  3. वाह बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण प्रेम के अनुपम रूप को चित्रित करती है आपकी यह रचना

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  4. प्रेम ही साकार है, प्रेम निर्विकार है।

    बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना।

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  5. पाया ही पाया है अब तक

    प्रीत लुटाने की रुत आयी,

    जगी ऊर्जा सुप्त पड़ी, कुछ

    कर दिखलाने की रुत आयी !
    वाह!!!!
    हमेशा की तरह लाजवाब...
    सभी विवाहितों को समर्पित भी ...
    🙏🙏

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